________________
परम पूज्य श्री 108 आचार्य आदिसागरजी महाराज [अंकलीकर] के तृतीय पट्टाधीश परमपूज्य सिद्धान्त चक्रवर्ती श्री 108 आचार्य सन्मति सागरजी
महाराज का मंगलमय शुभाशीर्वाद
बड़ी प्रसन्नता की बात है कि श्री दिगम्बर जैन कुंथु विजय ग्रंथमाला समिति, जयपुर (राजस्थान) से भद्रबाहु संहिता एवं सामुद्रिक शास्त्र करलखन का प्रकाशन हो रहा है। भद्रबाहु संहिता द्वादशांग में एक अपूर्व अंश है जिसमें अष्टांग निमित्त का बहुत उपयोगी विषय प्रतिपादित है। यह गृहस्थियों को ही नही अपितु निवृत्ति परक साधुओं के लिये भी उपयोगी है। परम पूज्य आचार्य महावीर कीर्तिजी महाराज भी इस ग्रंथ की उपयोगिता पर जोर देते थे, जिसका ज्ञान उन्होंने अपने परमाराध्य गुरुदेव परम पूज्य श्री 108 आचार्य चारित्र चक्रवर्ती मुनिकुंजर आदिसागर जी (अंकलीकर) से प्राप्त किया था।
गणधराचार्य कुंथुसागरजी महाराज ने इस भद्रबाहु संहिता की क्षेमोदय रीका लिखकर समाज पर बहुत बड़ा उपकार किया है। इस ग्रंथ को पढ़कर भव्य आत्माएँ स्वात्मबोध को प्राप्त होगी। ग्रंथमाला के प्रकाशन संयोजक गुरु उपासक श्री शान्ति कुमार जी गंगवाल ने बहुत ही कठिन परिश्रम करके इस ग्रंथ का प्रकाशन करवाया है। अत: श्री गंगवालजी एवं ग्रंथमाला के सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा बहुत-2 मंगलमय शुभाशीर्वाद है।
आचार्य सम्मति सागर