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भद्रबाहु संहिता
को कहे स्वप्नों से आगामी काल में आने वाले शुभ या अशुभ को भी जान सकते हैं, कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष तिथियों में आने वाले स्वप्नों से भी फलों में हीनाधिकता होती हैं। स्वप्न ज्ञानधिकार में बहुत अच्छा वर्णन आया है, वात पित्त कफादि के प्रकोपित होने पर जो स्वप्न आते हैं उसका फल नहीं होता है इतना विशेष समझो ?
प्रश्न निमित्तज्ञान- इसका अर्थ है प्रश्न करके उत्तर शुभाशुभ रूप में जाना जाता है, इसके अन्दर गणित की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसमें धातु, मूल, जीव, नष्ट, भृष्ट, लाभ, हानि, रोग, शोक, मृत्यु, भोजन, शयन, जन्म, कर्म, शल्य नयन, सेनागमन, नदियों की बाढ़, अवृष्टि, अतिवृष्टि, फसल, जय, पराजय, लाभ अलाभ विद्यासिद्धि, विवाह, सन्तान लाभ यशः प्राप्ति आदि जीवन के अनेक आवश्यक प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, इसमें त्रिकाल गोचर ज्ञान होता है।
प्रश्न निमित्त का विचार तीन प्रकार से किया जाता है, प्रश्नोंत्तर सिद्धान्त, प्रश्नलम सिद्धान्त, स्वरविज्ञान सिद्धान्त, मनोविज्ञान ही प्रश्नाक्षर का सिद्धान्त है, मानव के मन में छिपी हुई अनेक प्रकार की भावनाओं का प्रश्न रूप में सही उत्तर आना यहीं इस प्रश्न निमित्त का कार्य है।
(१) जैसे उदाहरण के तौर पर, प्रश्नकर्ता से किसी फल के नाम व कोई अंक संख्या पूछना चाहिये, फिर अंक संख्या को दो का गुणा कर फल और नाम के अक्षरों की संख्या जोड़ देने पर जो योग आवे, उसमें तेरह की संख्या जोड़ दें, नी का भाग देवे १ शेष बचे तो धनवृद्धि २ शेष बचे तो धनक्षय, ३ शेष बचे तो रोग का नाश, ४ शेष बचे तो व्याधि, ५ शेष बचे तो स्त्री लाभ, ६ शेष बचे तो बंधु का नाश, ७ शेष बचे तो कार्य सिद्धि, ८ शेष बचे तो मरण हो, ० शेष बचे तो राज्य प्राप्ति होती है।
( २ ) अगर प्रश्नकर्त्ता हंसते हुए प्रश्न करे तो कार्य सिद्धि समझो और मुँह बिगाड़ता हुआ उदासीन होकर प्रश्न करे तो कार्य का नाश होगा।
(३) प्रश्नकर्त्ता से एक से लेकर एक सौ आठ के बीच की संख्या को पूछे वह भी किसी बीच की संख्या को पूछे तो पूछे गये अंक संख्या में बारह का भाग देवे, तब १/७/९/३/ शेष तो समझो देर से कार्य होगा ८/४/१० / ५ शेष बचे तो कार्य का नाश होगा, २ / ६ / ११ / ० शेष रहे तो शीघ्र कार्य सिद्ध होगा प्रश्नकर्त्ता से किसी फूल, पुष्प का नाम पूछे, बताये गये