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तृतीयोऽध्यायः
जाता है। उल्कापात से व्यक्ति, समाज, देश, राष्ट्र आदि का फलादेश ज्ञात किया जाता है। सर्वप्रथम व्यक्ति के लिए हानि, लाभ, जीवन, मरण, सन्तान-सुख, हर्ष-विषाद एवं विशेष अवसरों पर घटित होने वाली विभिन्न घटनाओं का निरूपण किया जाता है। आकाश का निरीक्षण कर टूटते हुए ताराओं को देखने से व्यक्ति अपने सम्बन्ध में अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
रक्त वर्णकी टेढ़ी, टूटी हुई उल्काओं को पतित होते देखने से व्यक्ति को भय, पाँच महीने में परिवार के व्यक्तिकी मृत्यु, धन-हानि और दो महीने के बाद किये गये व्यापार में लाभ, राज्य से झगड़ा, मुकदमा एवं अनेक प्रकार की चिन्ताओं के कारण परेशानी होती है। कृष्णवर्ण की टूटी हुई, छिन्न-भिन्न उल्काओं का पतन होते देखने से व्यक्ति के आत्मीय की सात महीने में मृत्यु, हानि, झगड़ा, अशान्ति
और परेशानी उठानी पड़ती है। कृष्ण वर्ण की उल्का का पात सन्ध्या समय देखने से भय, विद्रोह और अशान्ति; सन्ध्या के तीन घटी उपरान्त देखने विवाह, कलह, परिवार में झगड़ा एवं किसी आत्मीय व्यक्ति को कष्ट; मध्यरात्रि के मय उक्त प्रकार की उल्का का पतन देखने से स्वयं को महाकष्ट, अपनी या किसी आत्मीय की मृत्यु, आर्थिक कष्ट एवं नाना प्रकार की अशान्ति प्राप्त होती है। श्वेत वर्ण की उल्का का पतन सन्ध्या समय में दिखलाई पड़े तो धनलाभ, आत्मसन्तोष, सुख और मित्रों से मिलाप होता है। यह उल्का दण्डाकार हो तो सामान्य लाभ, मूसलाकार हो तो अत्यल्प लाभ और शकटाकार - गाड़ी के आकार या हाथी के आकार हो तो पुष्कल लाभ एवं अश्व के आकार प्रकाशमान हो तो विशेष लाभ होता है मध्यरात्रि में उक्त प्रकार की उल्का दिखलाई पडे तो पुत्रलाभ, स्त्रीलाभ, धनलाभ एवं अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है। उपर्युक्त प्रकार की उल्का रोहिणी, पुनर्वसु, धनिष्ठा और तीनों उत्तराओं में पतित होती हुई दिखलाई पड़े तो व्यक्ति को पूर्णफलादेश मिलता है तथा सभी प्रकार से धन धान्यादि की प्राप्ति के साथ, पुत्र-स्त्रीलाभ भी होता है। आश्लेषा, भरणी, तीनों पूर्वा - पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाफाल्गुनी
और पूर्वाभाद्रपद - और रेवती इन नक्षत्रों में उपर्युक्त प्रकार का उल्कापतन दिखलाई पड़े तो सामान्य लाभ ही होता है इन नक्षत्रों में उल्कापतन देखने पर विशेष लाभ या पुष्कल लाभ की आशा नहीं करनी चाहिए, लाभ होते-होते क्षीण हो जाता