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__ भद्रबाहु संहिता
अध्याय में किया है आचार्य कहते हैं, आकाश देखते समय टूटते हुऐ तारों को देखकर व्यक्ति अपने लिये अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
उल्काएं माने, स्वर्ग की आयु पूर्ण कर देव के शरीर का प्रकाश पृथ्वी पर गिरता हुआ दिखे उसे ही उल्का म्हते हैं रात्रि में देखने पर तारा टटता हुआ दिखाई पड़े, जिसको जनसाधारण भाषा में तारा टूटना कहते हैं तारा भी एक ज्योतिषवासी देव है जब वो अपनी आयु पूर्ण कर लेता है तो पृथ्वी पर जन्म लेने के लिये आता है, उसके शरीर को जो कांति है उसी का नाम उल्का है अथवा इन ज्योतिषवासी देवों के विमान चलते समय आपस में टकरा जाने पर रगड़ से जो चिनगारी निकलती है, उसको भी किसी किसी ने उल्का कहा है ये उल्कायें विभिन्न वर्ण की विभिन्न आकार की होकर ग्रहों और नक्षत्रों के साथ मिलकर या स्वतन्त्र भी गिरती हुई दिखती हैं उल्काएं लाल, सफेद, पीली, नीली, हरी व मिश्र रंग की भी होती हैं, गाड़ी के आकार की, कमल वृक्ष, चन्द्र सूर्य स्वास्तिक, कलश ध्वजा, शंख, वाद्य, मंजीरा, तानपूरा, व गोलाकार की होती है, अलग-अलग नक्षत्रों में व वारों में पहरों में अलग-अलग फल देती है, राजाओं के लिये आचार्य श्री ने दो भेद किये एक नगरस्थ याने (नागर) और दूसरा (यादि) याने चढ़ाई करके आने वाला
आक्रमणकारी, नागरिक राजा जब आक्रमणकारी से युद्ध कर ने अपने नगर के बाहर निकलता है उस रात्रि में ये उल्काएं अनेक वर्ण की और अनेक आकार की होकर सेना पर या आगे या पीछे व राजा पर व नगर पर गिरती हुई दिखे इसी प्रकार आक्रमणकारी राजा के आगे पीछे आजू-बाजू सेना पर यदि गिरे तो उसका क्या होता है इस अध्याय में पूरा-पूरा वर्णन श्रुत केवली ने किया है इसको पढ़कर हम अनेक जीवन, मरण, लाभ, अलाभ, हानि वृद्धि, शुभाशुभ आदि जानाकरी स्वयं और पर की दोनों की ही जान सकते हैं, जानकर शान्ति के लिये प्रयत्न कर सकते हैं, इसी विषय में डॉ. नेमीचन्द शास्त्री आरा वालों ने अन्य निमित्त शास्त्रों का आधार लेकर यहाँ उसका वर्णन किया है सौ मैं उसका उदाहरण दे देता हूँ ताकि पढ़ने वालों को जानकारी विशेष प्राप्त हो जावे।
विवेचन-उल्कापात का फलादेश संहिता ग्रन्थों में विस्तार पूर्वक वर्णित है। यहाँ सर्वसाधारण की जानकारी के लिये थोड़ा-सा फलादेश निरूपित किया