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भद्रबाहु संहिता
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के आठ भेद हैं-(१) व्यंजन- तिल, मस्सा, चट्टा आदि को देखकर शुभाशुभ का निरूपण करना, व्यंजन निमित्त ज्ञान है। (२) मस्तक, हाथ, पाँव आदि अंगों को देखकर शुभाशुभ कहना अंग निमित्त ज्ञान है। (३) चेतन और अचेतन के शब्द सुनकर शुभाशुभ का वर्णन करना स्वर निमित्त ज्ञान है। (४) पृथ्वी की चिकनाई और रूखेपन को देखकर फलादेश निरूपण करना भौम निमित्त ज्ञान है। (५) वस्त्र, शस्त्र, आसन, छत्रादि को छिदा हुआ देखकर शुभाशुभ फल कहना छिन्न निमित्त ज्ञान है। (६) ग्रह, नक्षत्रों के उदयास्त द्वारा फल निरूपण करना अन्तरिक्ष निमित्त ज्ञान है। (७) स्वस्तिक, कलश, शंख, चक्र आदि चिन्हों द्वारा एवं हस्तरेखा की परीक्षा कर फलादेश बतलाना लक्षण निमित्त ज्ञान है। (८) स्वप्न द्वारा शुभाशुभ फल कहना स्वप्न निमित्त ज्ञान है। ऋषिपुत्र निमित्त शास्त्र में निमित्तों के तीन ही भेद किये हैं
जो दिट्ठ भुविरसण्ण जे दिट्ठा कुहमेण कत्ताणं।
सदसंकुलेन दिट्ठा वउसट्ठिय ऐण णाणधिया।। अर्थात्-पृथ्वी पर दिखलाई देने वाले निमित्त, आकाश में दिखलाई देने वाले निमित्त और शब्द श्रवण द्वारा सूचित होने वाले निमित्त, इस प्रकार निमित्त के तीन भेद हैं।
शकुन-जिससे शुभाशुभ का ज्ञान किया जाथ, वह शकुन है। वसन्तराज शाकुन में बताया गया है जिन चिन्हों के देखने से शुभाशुभ जाना जाय, उन्हें शकुन कहते हैं। जिस निमित्त द्वारा शुभ विषय जाना जाय उसे शुभ शकुन और जिसके द्वारा अशुभ जाना जाय उसे अशुभ शकुन कहते हैं। दधि, घृत, दूर्वा, आतप, तण्डुल, पूर्णकुम्भ, सिद्धान्त, श्वेत, सर्षप, चन्दन, शंख, मृत्तिका, गोरोचन, देवमूर्ति, वीणा, फल, पुष्प, अलंकार, अस्त्र, ताम्बुल, मान, आसन, ध्वज, छत्र, व्यञ्जन, वस्त्र, रत्न, सुवर्ण, पद्म, शृंगार, प्रज्वलित, वह्नि, हस्ती, छाग, कुश, रूप्य, ताम्र, वंग, औषध, पल्लव इन वस्तुओं की गणना शुभ शकुनों में की गयी है। यात्रा के समय इनका दर्शन स्पर्शन शुभ माना गया है। यात्रा काल में संगीत सुनना भी शुभ माना गया है। गमन काल में यदि कोई खाली घड़ा लेकर पथिक के साथ