________________
प्रथमोऽध्यायः
जाय और घड़ा भर लौट आवे तो पथिक भी कृतकार्य होकर निर्विघ्न लौटता है। यात्रा काल में चुल्लु भर जल से कुल्ली करने पर यदि अकस्मात् कुछ जल गले के भीतर चला जाय तो अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।
अंगार, भस्म, काष्ठ, रज्जु, कर्दम-कीचड़, कपास, तुष, अस्थि, विष्ठा, मलिन व्यक्ति, लौह, कृष्णधान्य, प्रस्तर, केश, सर्प, तेल, गुड़, चमड़ा, खाली घड़ा, लवण, तिनका, तक्र, श्रृंखला आदिका दर्शन और स्पर्शन यात्रा काल में अशुभ माना जाता है। यदि यात्रा करते समय गाड़ी पर चढ़ते हुए पैर फिसल जाय अथवा गाड़ी छूट जाय तो यात्रा में विघ्न होता है। मार्जारयुद्ध, मार्जार शब्द, कुटुम्ब का परस्पर विवाद मिलाई पड़ेजो चाटाल अनि होती है। यात्रा करना वर्जित है। नये घर में प्रवेश करते समय शव दर्शन होने से मृत्यु अथवा बड़ा रोग होता है।
___जाते अथवा आते समय यदि अत्यन्त सुन्दर शुक्ल वस्त्र और शुक्ल मालाधारी पुरुष या स्त्री के दर्शन हों तो कार्यसिद्ध होता है। राजा, प्रशन्न व्यक्ति, कुमारी कन्या, गजारुढ़, या अश्वारुढ़ व्यक्ति दिखलाई पड़े तो यात्रा में शुभ होता है। श्वेत वस्त्र धारिणी, श्वेतचन्दनलिप्ता और सिर पर श्वेत माला धारण किये हुए गौरांग नारी मिल जाय तो सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
यात्राकाल में अपमानित, अंगहीन, नग्न, तैललिप्त, रजस्वला, गर्भवती, रोदनकारिणी, मलिनवेशधारिणी, उन्मत्त, मुक्तकेशी नारी दिखलाई पड़े तो महान् अनिष्ट होता है। जाते समय पीछे से या सामने खड़े हो दूसरा व्यक्ति कहे-'जाओ, मंगल होगा' तो पथिक को सब प्रकार से विजय मिलती है। यात्राकाल में शब्दहीन शृगाल दिखलाई पड़े तो अनिष्ट होता है। यदि शृगाल पहले हुआ-हुआ' शब्द करके पीछे 'टटा' ऐसा शब्द करे तो शुभ और अन्य प्रकार का शब्द करने से अशुभ होता है। रात्रि में जिस घर के पश्चिम ओर शृगाल शब्द करे, उसके मालिक का उच्चाटन, पूर्व ओर शब्द होने से भय, उत्तर और दक्षिण की ओर शब्द करने से शुभ होता है।
यदि भ्रमर बाईं ओर गुन-गुन शब्द कर किसी स्थान में ठहर जाये अथवा भ्रमण करते रहें तो यात्रा में लाभ, हर्ष होता है। यात्राकाल में पैर में काँटा लगने से विघ्न होता है।