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प्रथमोऽध्यायः
आश्विन में दोनों पक्षों की दशमी और एकादशी, कार्तिक में कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी, मार्गशीर्ष में दोनों पक्षों की सप्तमी और अष्टमी, पौष में दोनों पक्षों की चतुर्थी और पंचमी, माघ में कृष्ण पक्ष की पंचमी और शुक्ल पक्ष की षष्ठी एवं फाल्गुन में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की तृतीया मास शून्य संज्ञक हैं।
सिद्धा तिथियाँ—मंगलवार को ३/८/१३. बुधवार को २/७/१२, गुरुवार को ५/१०/१५, शुक्रवार को १/६/११ एवं शनिवार को ४/९/१४ तिथियाँ सिद्धि देने वाली सिद्धा संज्ञक हैं।
दग्ध, विष और हुताशन संज्ञक तिथियाँ-रविवार को द्वादशी, सोमवार को एकादशी, मंगलवार को पंचमी, बुधवार को तृतीया, गुरुवार को षष्ठी, शुक्र को अष्टमी, शनिवार को नवमी दग्धा संज्ञक, रविवार को चतुर्थी, सोमवार को षष्ठी, मंगलवार को सप्तमी, बधवार को द्वितीया, गुरुवार को अष्टमी, शुक्रवार को नवमी और शनिवार को सप्तमी, विषसंज्ञक एवं रविवार को द्वादशी, सोमवार को षष्ठी, मंगलवार को सप्तमी, बुधवार को अष्टमी, बृहस्पतिवार को नवमी, शुक्रवार को दशमी और शनिवार को एकादशी हुताशन संज्ञक है। ये तिथियाँ नाम के अनुसार फल देती हैं।
करण—तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं अर्थात् एक तिथि में दो करण होते हैं। करण ११ होते हैं (१) वव (२) कालक (३) कौलव (४) तैतिल (५) गर (६) वणिज (७) विष्टि (८) शकुनि (९) चतुष्पद (१०) नाग और (११) किंस्तुघ्न। इन कारणों में पहले के ७ करण चर संज्ञक और अन्तिम ४ करण स्थिर संज्ञक हैं।
करणों के स्वामी–ववका इन्द्र, बालव का ब्रह्मा, कौलव का सूर्य, तैतिल का सूर्य, गरकी पृथ्वी, वणिज की लक्ष्मी, विष्टिका यम, शकुनि का कलि, चतुष्पाद का रुद्र, नाग का सर्प एवं किंस्तुघ्न का वायु है। विष्टि करणका नाम भद्रा है, प्रत्येक पंचाग में भद्रा के आरम्भ और अन्त का समय दिया रहता है।
निमित्त—जिन लक्षणों को देखकर भूत और भविष्य में घटित हुई और होने वाली घटनाओं का निरूपण किया जाता है, उन्हें निमित्त कहते हैं। निमित्त