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हस्त रेखा ज्ञान
यदि केवल चन्द्र तथा शनि दोनों ही क्षेत्र उन्नत हों तो जातक भीरु-स्वभाव का होता है और उसमें कल्पना-शक्ति की कमी पायी जाती है।
शुक्र क्षेत्र—यदि शुक्र-क्षेत्र सामान्य रूप से उन्नत हो तो पुरुष-जातक सुन्दर, स्वस्थ, यशस्वी, उदार, सदाचारी, विलासी, परोपकारी, निर्व्यसन, सहानुभूति पूर्ण, वस्त्राभूषण एवं खान-पान का शौकीन, संगीतप्रिय, समदर्शी, विचार का शुद्ध हृदय तथा सन्तानोत्पादन की क्षमता से परिपूर्ण होता है। उसकी हस्त-लिपि (लिखावट) भी सुन्दर तथा स्पष्ट होती है। यदि किसी स्त्री के हाथ में ऐसा शुक्र क्षेत्र हो तो वह सुन्दरी, स्वस्थ, सुखी प्रसन्न, परिश्रमी, सहानुभूतिपूर्ण या सर्वप्रिय होती है।
यदि शुक्र क्षेत्र अत्यधिक उन्नत हो तो जातक धनी, गुणी, विद्वान नीतिज्ञ तथा परोपकारी होने के साथ ही अहंकारी, निर्लज्ज, काम-कला कुशल, व्यभिचारी, नित नवीन स्त्रियों के साथ रमण करने वाला तथा गुप्त रोंगों का शिकार होता है। यदि किसी स्त्री के हाथ में ऐसा शुक्र क्षेत्र हो, गुरु तथा सूर्य के क्षेत्र दबे हुए से हों, हृदयरेखा पर अनेक द्वीप-चिन्ह हों, मस्तक-रेखा निर्बल हो तथा अंगूठे का प्रथमपर्व छोटा हो तो वह दुराचारिणी होती है।
यदि शुक्र क्षेत्र निम्न (दबा हुआ) हो तो पुरुष-जातक कठोर स्वभाव वाला, आलसी, स्वार्थी तथा वीर्य सम्बन्धी रोगों का शिकार होता है। यदि किसी स्त्री के हाथ में ऐसा शुक्र क्षेत्र हो तो वह जरायु सम्बन्धी रोगों से ग्रस्त बनी रहती
यदि शुक्र पर्वत द्वितीय मंगल क्षेत्र की ओर झुका हुआ हो तो जातक के जीवन में शुक्रीय-गुणों के अतिरिक्त मंगलीय-गुणों का भी समावेश होता है। द्वितीय मंगल क्षेत्र के उन्नत होने पर ही शुक्र क्षेत्र उसकी ओर झुका प्रतीत होता है, अन्यथा शुक्र क्षेत्र मणिबन्ध के अतिरिक्त अन्य किसी ओर को झुका हुआ दिखाई नहीं देता है।