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भद्रबाहु संहिता ।
चन्द्र-क्षेत्र-यदि चन्द्र क्षेत्र सामान्य उन्नत हों तो जातक काल्पनिक कवि, साहित्य, संगीत आदि ललितकलाओं का प्रेमी, सद्गुणी, स्नेही, बुद्धिमान, सदाचारी तथा परोपकारी होता है।
यदि उन्नत चन्द्र क्षेत्र के मध्य का तृतीयांश अधिक उन्नत हो तो जातक आँत एवं पेट सम्बन्धी विकारों से पीड़ित होता है। यदि ऊपरी भाग अधिक उन्नत हो तो पित्त, कफ एवं गठिया आदि का रोगी होता है।
__ यदि सम्पूर्ण चन्द्र क्षेत्र अत्यधिक उन्नत हो तो जातक उदार-हृदय, विलक्षण-स्वभाव, व्यसनी, मर्ख तथा रहस्यमय प्रेमी होता है। ऐसा व्यक्ति दुःखी मनोवृत्ति तथा चिड़चिड़े स्वभाव का एवं शिरोरोग से पीड़ित भी रहता
यदि चन्द्र क्षेत्र निम्न हो तो जातक क्षणिक-बुद्धि, असन्तोषी, अविचारी, सहानुभूति-शून्य एवं कल्पनाशक्ति
से रहित होता है। यदि चन्द्र क्षेत्र अधिक उन्नत न होकर लम्बा तथा सकरा हो तो जातक शान्तिप्रिय, एकान्तवासी, निरुत्साही तथा आलसी होता है।
यदि चन्द्र क्षेत्र मणिबन्ध की प्रथम रेखा की ओर बढ़ा हुआ है तो जातक हवाई किले बनाने वाले तथा शेखचिल्लियों जैसे दिवा-स्वप्न देखने वाला होता है।
यदि अन्य ग्रह क्षेत्रों की अपेक्षा केवल चन्द्र क्षेत्र ही उन्नत हो तो जातक तर्क-प्रिय तथा सविचारी होता है। यदि ऐसे क्षेत्र पर एक अद्धरेखा भी विद्यमान हो तो जातक को भविष्य-सूचक-स्वप्न आया करते हैं, फलत: बह आसन्न संकटों के प्रति सावधान बना रहता है।
यदि चन्द्र तथा बुद्ध-दोनों ही क्षेत्र उन्नत क्षेत्र हो तथा अन्य ग्रह दबे हुए हों तो जातक बुद्धिमान, भाग्यशाली, अभिनयकुशल तथा कार्टून आदि व्यंग्य-चित्रों का निर्माता होता है।
यदि केवल चन्द्र तथा शुक्र दोनों ही क्षेत्र उन्नत हों तो जातक काल्पनिक एवं समस्त सुखों का उपभोग करने वाला होता है।