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निमित्त शास्त्रम्:
शुत्तरणुत्तरियाणं णयराण विणासणो हेमंते रोय भयं वसंत मासे
( णुत्तरणुत्तरियाणं णयराण) उत्तर दिशा की ओर उठा हुआ गन्र्धव नगर उत्तर दिशा के नगरों का (विणासणी हवइदिट्ठो) विनाश करेगा ऐसा समझो (हेमंतेरोय भयं ) हेमन्त ऋतु में गन्र्धव नगर दिखे तो रोग भय उत्पन्न होगा, और (वसंतमासे सुभिक्खयरे) वसंत ऋतु का गन्र्धव नगर सुभिक्ष करता है।
भावार्थ-उत्तर दिशा में यदि गन्र्धव नगर दिखे तो उसी दिशा के नगरों का नाश होगा, हेमन्त ऋतु में गन्र्धव नगर दिखे तो रोग भय उत्पन्न होगा, वसन्त ऋतु में दिखे तो सुभिक्ष होगा, ऐसा कहते हैं ॥ १३६ ॥
गीम्बेण णयरघादी पाउसकाले वरिसामय दुब्भिक्खं सरपुणवहि
हवइदिट्ठो । सुभिक्खयरे ।। १३६ ।।
रिजकालमऊ मज्झरायाणं
असोइणोदिट्टो । पीडयरो ॥ १३७ ॥
( गीम्बेण णयर घादी ) ग्रीष्म काल में हो तो नगर का नाश होगा ( पाउसकाले असोइणोदिडो) यदि वर्षा के समय ऐसा दिखे तो ( वरिसामय दुब्भिक्खं) वर्षा का नाश होगा, दुर्भिक्ष होगा ( सरएपुणवहिपीडयरो) शरद ऋतु में गन्र्धव नगर दिखे तो मनुष्यों का नाश होगा |
वर्षा
भावार्थ- ग्रीष्मकाल में गन्र्धव नगर दिखे तो नगर का नाश होगा, में ऐसा दिखे तो वर्षा का नाश होगा, दुर्भिक्ष होगा, शरद ऋतु में दिखे तो मनुष्यों का नाश होगा ॥ १३७ ॥
ऐसो
रयक्खयहिंडमाणणूवस्स ।
छम्मासै सो विणासेई ॥ १३८ ॥
(रिउकाल मऊ एसो रक्खयहिंडमाणणूवस्स) अन्य ऋतुओं में गन्र्धव नगर यदि दिखलाई पड़े तो ( छम्मासै मज्झणेरायाणं ) छह महीने के अन्दर राजा का (सोविणासेई) वह नाश करता है।
भावार्थ — यदि अन्य ऋतुओं में गन्र्धव नगर दिखाई पड़े तो समझो, छह महीने में राजा का विनाश होगा ॥ १३८ ॥