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भद्रबाहु संहिता
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जायेगा, राजकुलों का भी लोप होगा, पुत्र, स्त्री का भी लोप हो जायेगा और भूमि पर पाप ही पाप बढ़ जायेगा॥३२॥
इंदो वरसइमंदं सस्साणविणासणो हवड़ लोए।
इयंप्पापणिमित्तं जाणेयत्वं च पयत्तेण ॥१३३॥ (इंदो वरसइ मंद) वर्षा बहुत थोड़ी होगी (लोए) लोक में (सस्साणविणासणोहवइ) धान्यों का नाश होगा (इयनुप्पाप णिमित्तं) इस प्रकार की उल्का से (जाणेयध्वं च पयत्तेण) सब नाश ही नाश जानना चाहिये।
भावार्थ-वर्षा बहुत थोड़ी होगी, लोक में सब प्रकार के धान्यों का नाश हो जायेगा, चारों तरफ से जन-धन की हानि होगी॥१३३ ॥
गन्धर्वनगर का फल पुवदिस्सम्मिय भाए दीसदि गंधव्व सण्णिहोणयरो।
पश्चिम देश विणासो होहइ तत्थेव णायन्वो॥१३४॥ (पुवदिस्सम्मिय भाए) यदि पूर्व दिशा में (दीसदिगंधव्व सण्णिहोणयरो) गन्धर्व नगर दिखाई दे तो (पश्चिमदेश विणासो होहइ) समझो पश्चिमी देशों का नाश हो जायेगा, (तत्थेवणायव्वो) ऐसा जानना चाहिये।
भावार्थ यदि पूर्व दिशा में गन्धर्व नगर दिखे तो पश्चिमी देश का नाश होगा ऐसा जानना चाहिये॥१३४ ।।
दक्खिणदिसम्मेिदिट्ठो रायाण विणासणो हवेणियो।
अहपश्चिमेण दीसद हणइपुण पुव्वदेसोई॥१३५॥ (दक्खिणदिसम्मिदिहो) यदि गन्र्धव नगर दक्षिण दिशा में दिखे तो (रायाणविणासणी हवेणियरे) निकट में ही राजा का नाश होगा। (अहपश्चिमेणदीसइ) यदि पश्चिम दिशा में दिखे तो (हणपुण पुब्बदेसोई) पूर्व देश का नाश होता है।
___ भावार्थ-यदि गन्र्धव नगर दक्षिण दिशा में दिखे तो शीघ्र ही राजा का नाश होता है पश्चिम में दिखे तो पूर्व देश का नाश होगा॥१३५ ।।