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| भद्रबाहु संहिता |
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तद्देसेसोणासदि जत्थपहिडंति दीसए राई।
पच्चूसे चोर भयं णरवड़णासं च पुण एहं ॥१३९॥ (जत्थ) जिस (तसे) देश में (राई) रात्रि के अन्दर (पहिडंतिदीसए) गन्धर्व नगर दिखे तो समझो उस देश का (सोणासदि) वह नाश करेगा (पञ्चूसे चोर भयं) कुछ रात्रि बचने पर गन्र्धव नगर दिखाई पड़े तो चोर भय होगा व (णरवइणासं च पुण एह) राजा का नाश होगा।
भावार्थ-जिस देश में रात्रि के अन्दर गन्र्धव नगर दिखाई पड़े तो उस देश का नाश होगा, रात्रि के पिछले प्रहर में दिखलाई पड़े तो चोर भय और राजा का नाश होता है।। १३९ ॥
अणकालम्मिदिढे सुभिक्खय रोग उहदेसयरो।
जइमं वण्णइ दीसए हणऊ अणेयायविसयाइ॥१४०॥ (अणकालम्मिदिहे) यदि अन्य काल में गर्धव नगर दिखे तो (सुभिक्खय रोग उहदेसयरो) सुभिक्ष होगा, और रोग का नाश होगा (जइमंवण्णइदीसए) जो ऊपर बतला कर आये उस काल को छोड़कर दिखे तो (हणऊ अणेयाय विसयाइ) ऐसा फल होता है, सो जानो।
भावार्थ-ऊपर बतलाकर आये काल को छोड़ कर अन्य काल में गन्र्धव नगर दिखे तो सुभिक्ष होगा, एवं रोग का नाश करेगा॥१४० ।।
नाना वर्ण गन्र्धव नगर का फल चितलवो भय जणणो सामारोयस्स संभवा होई।
घियतिल्ल खीर घादी सुक्किल ऊहोयलोयस्स ॥१४१ ।।
(चितलवो भय जणणो) पंचरंगा गन्र्धव नगर दिखे तो भय को उत्पन्न करेगा, (सामारोयस्सस संभवा होई) नगर भय वा रोग भय होगा, (घियतिल्लखीर घादी) घी या तेल व दूध का नाश (सुक्किल ऊहोयलोयस्स) सफेद गन्र्धव नगर के दिखाई पड़ने पर होता है।
भावार्थ—यदि पचरंगा गन्र्धव नगर दिखाई पड़े तो नगर को रोग भय होगा