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________________ माई अनीलमति एवं उसके समकालीन सावि ५७ बित्त जोग बहु दीर्ज दान । चौसंघह धरिए प्रति मान ।। प्रशिका ने सारी पहराइ । पाठ गप बोलिए लिया ।।१६५॥ दुषी दीन दालिद्री जिते । करि सममान पोषिये तिते ।। सुदरि पर श्रीपाल कुवार । सुनि मनमें मुल्ल क्रियो अपार ११६६|| गुरु को निमसकार करि धनें । गए निज मंदिर दोऊ जने ।। रहै सुषसु बहु बढे उल्हास । प्राय पहुँतौ कातिग मास ॥१६७।। कातिक को प्रष्टाहिका ससि पक्षह अष्टमी दिन भयो । अति निर्मल फासू अल लयो ।। न्हाए अंग पहरियौं वस्य । अति उज्जल देषिये समस्य ।।१९८।। सर्व दर्व लिए धरि भाउ 1 मति हर्षित मन उपम्मी पाउ ।। इंछिमुक्ति गए जिन गेह । बीत राग बंद्या सुभ देह ।।१६।। तिहूं गुप्ति मम नस अरु काय । पणविधि श्री जिन सासरा पाय || थिरमन होय किमी प्रति गाह् । विधियों पूज्यौ श्री जिननाह २००।। बसु दिन प्रति विधिस्पों मांखियो । राग रोस दोऊ शडियो । जानै सम सो सत्रु पर मित्र । ब्रह्मचर्य पाल्यौ इक चित्त ॥२०१।। मुनि पं लीन्ही कियों उपास । उपज्यो दुष्ट कर्म को यास ।। नीकै सिद्धचक्र पूजियो । सुषभाब गंधोदिक नियो ।।२०२।। गन्धोदक लगाना अति सुगंध को करें विचार । वंछिल गई जहां भरतार ।। सिरसे तवं म्हवायो सोइ । प्रथहि विन कछु नीको होइ ।।२०३११ श्रीपाल अरु सातसं जु अंग । देषियो पुन्यह फल त्रु अभंग । वसु विधि पूजा राउ करेई । मांनी सुरग निसनी देइ ॥२०॥ ढरै चोर बाजे कसाल । जलधारा दीन्ही मुकुमाल ।। मलियागिरि सों कुंकम गारि | चरच्यो जिनवर विष निहारि ।।२०५।। ससि सम पवल प्रछत लिह सयौं ! सुबर पुंज मनोहर दिए ।। पहुप मनोहर मान्दा रूप । प्रति सुगंध देषिये अनूप ॥२०६।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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