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श्रीपाल चरित्र
पुनि चक्कीय ज्वालामालिनी । अंबा परमेस्वरी पौमिनी ।। च्यार्यो लिषिजे गुनाह विसाल । सिपिए तहां दसौं दिगपाल ॥१८३|| गोमुख जरसुर लेषिए । बारि मानभद्र थापिए । दषमुष को यापिए सारंग । दसौ द्वार उद्योत अभंग ॥१८४॥ वसु दिन पालही सील सुभाउ । इंदिनी को उपसरगु मिटाउ ।। मूल मंत्र बमु दिन भाषिए । होज नवीत भाउ राषिए ।।१२।। संक्षेपह विधि यह मैं कही । पुत्री सुनस भई गह गही ।। दृष्ट कुष्ट तन नीको होइ । रोग सोग सद डार षोइ ।।१६।। बितर प्रेत मै न कछु कर । वसीकरन मोहन सब हर !! होई जसु पन बढे अपार । पुत्र कलित्र बाढ परियार ।।१८७।। नर अरु नारि सबै सुष लहै । दुःष दारिद्र तहां नहीं रहें ।। सुनि पुत्री पूजा विधि जिसी । तो सौ बरन कहाँ हौ तिसी ॥१८॥ कातिग फागुन प्रसाद यानि । स्धेत पक्ष निर्मल प्रति जान ।। मष्टमि दिन कीजे उपवास । कीजे इंद्रिन को सुष नास ।।१६।। वसु दिन ब्रह्मचर्य मंदिए । घर की चिता सब पांडिये ।। सिद्धचक्र घसु दिन तजि मानु । की पूजा मिट मबसांनु ॥१६०।। नीक करि थिरु मनु राषियै । मूल मंत्र पुनि मुनि भाषिये ।। मनबांछित फल पार्य जब । उद्यापन विधि कीजे तवं ।।१६१।।
मतका उद्यापन
कीजे आठ भुवन जिन तनं । घरिए माठ बिंब अति वन ।। कीजे सिंघ जंत्र सुभ भट्ट । या मुनिवर गुनह गरिष्ट ।।१६।। झलरि मुकट चमर सुम थान 1 की पाठ पाठ परवान ।। कौ पाठ प्रतिठणसार । बहु धन पर चित उदार ।।१६।। पूजा पाठ करी परि भाउ ! अथवा एक मन करि घाउ ।। उद्यापन का होइ न चाहि । सो दुनौं व्रत कीजिए निवाहि 11१६४॥
१ माठ
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