SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाई प्रजीतमति उसके समकालीन कवि ६५ रत्नत्रय भूषण सुभ चित । एकरूप देषण परि मित्त ॥ प्रानंदकरण ज ज जगदीस । जै जै कसनासर सिब ईस ।।१७३॥ सुभ चित्त दोऊ सिरनाइ । बैठे चरन कमल तट जाइ ।। तब सुदरि बोली करि भाउ । हौं वापिनी मोहि समझोउ ||१७४।। भी स्वामी का ज्ञान पयासि । संस मेरै चित को नासि ॥ जै जै मुनि श्रीपाल निहार । नाह भीष दे चित्त उदार ||१७५॥ कछू धरम स्वामी कहि सोइ । कुष्ट व्याधि जाते क्षय होइ ।। मुनि द्वारा संबोधन मुनिवर कह पुत्ति सुनि एह । अणुवत गुण समकित तू लेह ।।१७६।। पुनि सिष्यात सुनहु विधारी । पभने मुनिवर पक्षाहारि ।। गुरुवो धरम प्रगट्यो जो प्राहि । नीकै करि सुनि भाषों ताहि ॥१७७।। मुनीश्वरोवाच हे पुत्री भूपता ।। धर्मे मतिर्भवति कि बहुना अतेन । जोवे दया भवति, कि बहुभिः प्रदानः ।। शांतिमंनो भवतु किं कुजनश्चसुष्ट : । पारोग्यमस्तु विभवेन बलेन किंवा ॥१७॥ बुद्ध फलं तस्यविचारणं च । देहस्य सारं प्रसधारणं च ॥ प्रर्थस्य सारं किल पात्रदांन । बाच; फलं प्रीतिकरं मरारण ॥१७६।। सिद्धचक्रवत लेने के लिये कहना चौपई निर्मल सिद्धचक्रवत हु । अष्टान्हिका बहो व्रत एहु ।। तब ताप मुनियो बिघि साधि । वसु दिन सिद्धचक्र प्राराधि ।।१८।। प्रथमह मंडल का बांनि ! ॐकार प्रथम हि जांनि ।। चहूं कूर्ण लिषि सोलह घट्ट । मझि पंच परमेट्ठि गगरराष्ट्र ॥१८१॥ दल दरन ते लिषिए बसु वर्ग । अ क च ट त प य स ये वसु एर्ग ॥ दल अंतर अंतर सुवनाय । दरसन ज्ञान चरित्र सुभाय ।।१८२।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy