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अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं इसीलिए उनकी "श्रीपाल परित" कृति की पचासों पाण्डुलिपियां जैन प्रत्यागारों में उपलब्ध होती है । डा. कासलीवाल ने ऐसी महरवपूर्ण कवियों एवं उनकी कृतियों को खोज निकालने में जो अथक परिश्रम किया है
और उसमें सफलता प्राप्त की है उसके लिए वे साधुवाद के पात्र है। साहित्यिक जगत उनकी इस महान् सेवा के लिए घिरऋणी रहेगा।
श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी साहित्य सेयी संस्था है जिसकी स्थापना समस्त हिन्दी जैन साहित्य को योजनाबद्ध बीस भागों में प्रकाशित करने के लिए की गई है । यह उसका सप्तम पुष्प है इसके पूर्व छह पुरुपों में, ब्रह्मा रायमल्ल, बूधराज. छीहल, गारवदास, ठक्कुरसी, ब्रह्मजिनदास, भ. रत्नकीर्ति, भ० कुमुवचन्द्र, प्राचार्य सोमकीति, सांगा, ब्रह्मा यशोधर, बुलाकीचन्द, खुलाखीदास, पांडे हेमराज हेमराज गोदीका जैसे कवियों पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के रूप में बहुत सुन्दर प्रकाश डाला जा चुका है।
अकादमी के षष्टम पुष्प का विमोचन गत वर्ष मार्च में महामहिम राष्ट्रपति थी ज्ञानी जैलसिंह जी ने तिजारा (राजस्थान) में प्रायोजित पंचकल्याणक महोत्सव में अपने कर कमलों से किया था। यह प्रथम प्रवसर था जबकि देश के महामहिम राष्ट्रपति जी ने किसी जैन विद्वान की कृति का विमोचन किया हो। इसके पूर्व के पुष्प भी स्व० डॉ० सत्येन्द्र, क्षुल्लकरम सिखसागर जी महाराज लाग्नू वाले, भट्टारक चारूकीति जी महाराज मूडबिद्री जैसे मनीषियों एवं सन्तों द्वारा विमोचित हो चुके हैं।
श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र की तरह साहित्यिक क्षेत्र में भी कार्य करते रहने की ओर निरंतर जागरूक है । यह यह भी चाहती है कि श्री महावीर अन्ध अकादमी जैसी साहित्यिक संस्था द्वारा जैन साहित्य के प्रकाशन का कार्य निरन्तर आगे बढ़ता रहे । मैं समाज के सभी महानुभावों से प्रार्थना करता हूं कि वे अकादमी के अधिक से पधिक से संख्या में सदस्य बन कर जैन साहित्य के प्रकाशन में अपना पूर्ण योगदान देखें।
निमल कुमार जैन