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________________ दो शब्द ( डॉ. होरालाल माहेश्वरी, एम.ए, एल-एल. बी., डी. फिल्,, डी. लिट् ) माधुनिक भारतीय आर्यभाषामों-विशेषत: हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी के साहित्येतिहासों में जैन काव्य धारा का महत्वपूर्ण स्थान हैं। वह धारा बड़ी ध्यापक है । जैन काथ्य की गणना पामिक काव्य के अन्तर्गत है । जिन जन कवियों ने लौकिक प्रेम कहानियों और इतिहास को आधार बनाया है. उन्होंने भी धार्मिक रचनाएँ तो लिस्त्री ही हैं। मध्य युग में मुख्यतः तीन तत्व जनभावना को प्रेरित करते थे-राजा, धर्म और परम्परा । धार्मिक प्रेरणा से ही हमारी अधिकांश सांस्कृतिक पोर साहित्यिक पाती सुरक्षित रह गई है। जैन काग्य का निर्माण, संरक्षण और प्रचार-प्रसार इस प्रेरणा के फलस्वरूप हुमा है। पात्मिक उत्थान उसका लक्ष्य है। माध्यम हैतत्-तत् कालीन क्षेत्र-विशेष में प्रचलित सरल भाषा और कथ्य है-(1) परम्परागत और पौराणिक कथाएं तथा (2) स्वानुभव भोर भावपूर्ण उद्गार 1 साहित्यिक दृष्टि से सर्वाधिक आकर्षक है-जैन कथा और चरित कान्य । ऐसे काच्यों में स्थान-स्थान पर मनोवृत्तियों और दशाओं, विभिन्न वस्तुओं, त्योहारों, अवसरों, प्रकृति प्रादि के भाव-भीने चित्रण मिलते हैं। कथा में वणित समाज की सुग-युगीन झांकी के भी दर्शन होते हैं। इन काव्यों की विशिष्ट शब्दावली का सांस्कृतिक महत्व है। इस महत्व को भलीभांति दर्शाना अध्ययन का एक पृथक पहलू है । इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए । यद्यपि भारतीय साहित्य भिन्न-भिन्न भाषामों में लिखा गया है तथापि वह मूलतः एक है । देश, काल, युगीन मान्यतामों, विचारों और परम्परानों के कारण उसमें अलग-अलग रंगत दिखाई देती है। भारतीय साहित्य वाटिका में भिन्न-भिन्न भाषा-साहित्यों के फूलों की यह रंगत भी उसका विशिष्ट सौन्दर्य है । (viii)
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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