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संरक्षक की ओर से
श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी के सप्तम पुष्प "बाई प्रनीलमति एवं उसके समफानीन कवि" को पाठकों को हाथों में देते हुए मुझे प्रत्यधिक प्रसपता है । प्रस्तुत पुष्प में बाई अजीतमति, परिमल चौधरी, भ० महेन्द्रकीति, धनपाल एवं देवेन्द्र कवि-इन पांच कवियों का जीवन परिचय एवं उनके कामों के विस्तृत प्रध्ययन के साथ उनकी मुल कृतियों को भी प्रकाशित किया गया है। यह प्रथम अवसर है अब योजनाबद्ध प्राचीन जैन कवियों की रचनामों को सुसम्पादित करके साहित्यिक जगत के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है । सप्सम पुष्प के पास कवियों में से परिमल चौधरी को छोड़ कर शेष सभी चार कवि पब सम पशाप्त एवं मचित रहे हैं। यही नहीं हिन्दी जगत के समक्ष एक महिला कवि बाई मत्रीतमति को खोज निकालने में भी डा० कासलीवाल जी को सफलता मिली है। गाई मजीतमति की कृतियों के प्रध्ययन के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है वहकि प्राध्यात्मिक कवयित्री पी तथा भक्ति परक पद रचना में पूर्ण रुचि लेती थी।
भ० महेन्द्रकीति के सभी१५ पद उच्चस्तर के है जो अध्यात्म एवं भक्ति रस में प्रोत प्रोत हैं। धनपाल कवि ऐतिहासिक पदों के लिखने में कचि लेते थे। वे पहले कवि हैं जिन्होंने केशोराय पाटन में स्थित भगवान मुनिसुव्रतनाथ, प्रामेर (जयपुर) में स्थित भगवान नेमिनाथ, टोडारायसिंह में स्थित भगवान प्राधिनाथ एवं सांगानेर में स्थित भगवान महावीर की प्रतिशययुक्त प्रतिमानों के स्तवन के रूप में पद लिखे हैं। इसी तरह देवेन्द्र कवि हैं जिन्होंने संवत १६३८ में यशोधर रास को महमा नगर (गुजरात) में निबद्ध किया था। यशोधर रास १६वीं शताब्दी की महत्वपूर्ण कृति है जिसका भी प्रथम बार प्रकाशन किया गया है । इसी पुष्प में १७वीं शताब्दी के महत्वपूर्ण कवि परिभल चौधरी का गहन अध्ययन किया गया है । कवि परिमल अपने युग में ही नहीं किन्तु उसके पश्चात् दो शताब्दियों सक
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