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बाई अमीनमति एवं उसके समकालीन कवि
बोली नारि बन सुनि एह । मन में उपयौ प्रति संदेह ।।
श्रीपाल से मेमासुन्दरी का निवेदन
बालम सुनौं कहीं अब तोहि । कर्कस बचन कहाँ मति मोहि ।।१५१। नौ करि सोचौ मन माह । औं लो उदै कर्म की छांह ॥ तौंलो भुगती दुष सुष संत । मूलि न काइ रहूजे कंत ॥३२॥ विधिना मोहि पट्ट लिषि दियो । सोई मोकी निश्च भयो । तुम मेरे प्रीतम भरतार । तुम मेरे प्रनिनि प्राधार ।। १५३।। तुम प्रति रूपवंत गुनवंत । तुम ही सुष सागर वलिवंत ।। लोचन सुखी जो गौं मा नौला देगे तुः नि:सार ३४ी. तौलौ पवित्त रहे शुभ ठाम । जो लौं जपो तुम्हारौ नाम ।। तो लौं हाथ धन्य सुनि राय । जो लो प्रछालों तुम पाइ ।।१५५।। घाह धन्य कल कही न प्राइ । जो बालंनी कंठ लगाह ।। हो त्रिय धन्य तो लो जिय धरौ । जो लौं सेव तुहारी करीं ॥१५६५ सील विहुनी नारि जु होइ । पिय की निदा करि है सोइ ।।
पतिव्रता सब हो गुन भरी । हो तो सीलवंप्ति सुदरी ।।१५।। शील की महिमा
सीलहील्यो मेरो प्रति चित्त । सील पिता बंधु अरु मित्त ।। सीन परिग्रह मेरी संग । सील रूप मेरी सरबंग ॥१५८ ।। सील द्वादस भाभरन बिचार | सोल है नब सत शृगार ।। झीलं जीवन सीतं मरन । सीले सर्व सु सौलं सरन ।।१३९11 सील मेरै नग उनमांन । तौलौं तजौ न जौं लौ प्रांन । सर्वस जाइ सील जी रहे । त्रिभुवन मैं सोभा सो लहै ।।१६।
श्रीपाल का प्रसन्न होना
यह सुन सिरीपाल हरषियो । घनि मैंनासुदरि सेरौ हियो । अनि भामनि तेरो प्रोतार । जिह लिंग धर्यो सील को भार ।। १६१॥