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बाई सात रची चहूं पास पुर वाहरि राखियो नरेस
प्रजा द्वारा दुःख प्रकट करना
नौतन दीए कराइ प्रावास 11 दिए बहुत पुर पट्टन देस ॥ १३८ ॥ ॥
बहुत दीए वाजने निसांन । दियो सुखी बिना उनमान ॥
राजा दियौ प्रति घन जितौ । कवि परमल न बन्यो ति ।। १३६ ।।
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सई कुबरि चौठोर चढाह । सिरीपाल धरि गयो लिवाइ ॥
यह सुनि नगर भयो कहाउ | सभी कहैं धृग घृग यह राउ || १४०
रो परियन के उनमांन । रौवं मंत्री ग्ररु परधांन ॥
रोवं रयति कुली छत्तीस
श्रीपाल चरित्र
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रोबत पशु पंछी सब दीस ।। १४१ ।।
तू विनां प्रति षोटो आहि । बुरे भने नहि दे चाहि ॥ घर घर घेर कर विलषांहि । राजइ गारि देहि पिछलाहि ।। १४२ ।।
बहुत बात को करें विचार । सुष निवसे श्रीपान कुंबार ॥ मैंनासुदरि मन की ईा । एकै दिन एकासन विखा ।। १४३ ।।
संगति का महारथ्य
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तब श्रीपाल कहै ए नारि प्रांन पियारी देषि विचारि ॥ तू त्रिसुद्ध गुन सील अभंग । रूपवंत कंचन मैं अंग ।। १४४ ।। चन्द्रभुषी सुनि अभी निवास । मति आग तू मेरे पास जौली असुभ मो कर्म । तौ तौ राषि श्राफ्नो धर्म ।। १४५ ।। बार बार हूं जिनक तोहि । सुदरि मति आलं मोहि ।। ए बलभा तुम सुषदातार संगति बाढ दोष पार ।। १४६ ।।
संगति गुनी निरगुनी होइ संगति होत कुबुधी लोइ ॥ संगति तपा भ्रष्ट व्रत तजं । संगति पाइ सुरभी भजे ।। १४७ ।।
संगति साधु सुरा प्राचरं । संगति हो चोरी न करें ॥
संगति सींह स्यार होइ जाइ । संगति श्रावक श्रामिष षा ।। १४८ ।।
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संगति चित्र तर्फ पट कर्म्म संगति से ह्न धर्म धर्म ॥ संगति सील तजें बरनारि । भामनि मनमै देषि विचारी ।। १४६॥
संगति कोड च दुप लहै । सिरीपाल सुंदरियों कहै || मेरो संग बुरी मनि भानि । सुंदरि बात हमारी मांनि ।। १५० ।।