________________
अंपास चरित्र
शिवगुर तब धा लियों बुलाय । नाउ कर्ण सु को कहै बढाउ॥ बोल्यौ निकाट कहै सब राज । विद्या सुरसुन्दरी पढाउ ।।२०५।। जितनी होइ कला अरु ग्यांन । सब सिपाइ ज्यो प्ररथ पुरांन ।। भली भली पांडे उच्चरी । मौ परि पा गुसाई करी ।।२०६।। जो मौप गुण हो है राइ । याहि पढाउ सनिकु ताई। सुनी बात सब दुस्यो राइ । कछुक साको कियो पसाय ।।२०७।।
तब तिह भूपहि दइ असीस । जुग जुग जीवो कोडि बरीस ।। महिमंडल में प्रगटी प्रान । राज तेज बढो दिनमांन । २०८।।
सोरठा
जो लौ ससि मरु भान, जल गिर मेरु महि उचरं ।। तो लग इन्द्र समान, मंगल होहि नरेस घर ॥२०६।।
चौपई
विप्र गयौ घरि कुवरि लियाई । लाग्यो ताहि पढावन जाई ।।
मैंनासुन्दरि स्यौ नूप कहे । पुत्री कहा तोहि मनु रहै ।।२१०॥ मंनासम्बरी की शिक्षा
मुतौ तान हो कही सुभाइ । पहिलो जिन चैत्यालय जाइ । दंपति सुख तब भयौ अभंग । पुत्री लई उठाइ उछंग ॥२१॥ रानी राउ और जनभए । पुत्री लं देवाल' गए । पूजा प्रष्ट प्रकारी ठई ! अँसी परम गुरनि बरनई ॥२१२।। जल गंधाक्षत पुष्प अनूप । नईवेद दीपक अरु धूप ।। नाना विध फरल घरे बनाइ । दियो अरघ मन बच पर काय ॥२१३।। पुनि तिह ठां पेषियो मुनिद । जय जय तन उपर नरिंद ।। बस्यौ सुधभाव जिरणराज । भवसमुदह तिरन जहाज ।।२१४।। ध्यायें चेयण गुण जु, अपंछ । तीन गुपति पालन गुणमंड। भव्य कुमुद परफूलए चंद । घरसत ताहि वढे प्रानन्द ॥२१॥ मिथ्या तिमर विनरसन भान । जिन नियुकं खाइयो भय थांन । सत्रु मित्र जाफै इक्रसार । मन के निह सब तजे विकार ॥२.१६॥