________________
बाई अजीतमप्ति एव उसके समकालीन कवि
संकर के ज्यो पारवती रती । प्रति सरूप सीता सम सती ।
तार्क गरभ सुप्ता हूँ रही। रूमवंत में पंडित सही ॥१३॥ वो कायात्रों का जन्म -
दोऊ प्रति गुनग्य भौतरी । प्रति लावनि विराज परी ॥ प्रथम कुवरि सुरसुन्दरि प्राहि । बहुत रूप सोभित है जाहि ॥१९॥ परि सिंवधर्म बस ता चित्त । कुगुर कुदेव सुघ्यावं नित ।।
कछु बिबेक ताहि नहीं होइ । छ ससारह सुष सो littal मंनासुन्दरी
लघु कन्या मैना सुन्दरी । रूपवंत अस सब गुन भरी ।। अंग अंग की सोभा जिसी । बलं कथा जो बरनौ तिसी ॥१६६।। अरु प्रति जैनधर्म परकीन । सीलवंत रस्नत्रय लीन । निर्मल जाको हिरदो ओइ । कपट बघन पौल नहिं सोइ ।।१६७।। बहुत विवेक चित्त ता रहै । मिथ्या बचन भूलि नही कहै । सब सखियन मैं सोम खरी। ज्यों सरिता मोहै सुरसरी ॥१८॥ मधुर बचन बोल बिसाइ । सब कुटंब राज सुषपाइ । पाए पाए घिय अंकौं भरै । रहसि खिलाद लगावै गर ।।१६६।। और बहुत को कहै वषांन । तिहकों उपज्यो बहुत सयानु ॥ मापन मंत्री विचार राइ । अरु तिन लीनी प्रिया बुलाय ॥२०॥ जुगस रवानी दौस एहु । देषत नैननि उपजे नेहु ।। मेरै जिय इह कही विचारि । इन पढावे सुनि वरनारि ॥२०१॥ सुनी राइ इन भांबतो जहाँ । दोऊ कुवरि पढावी तहां ॥ तिनै विसि करि पूछ राउ । पुत्री की प्रापर्नी भाउ ॥२०२।। जो गुर भावहि तुमहि सुजांन । तापं विद्या पढौ पुरांन ।।
सुरसुन्दरी कहै सुनि तात । सांची कहीं आपनी बात ।।२०३।। सुरसुवरी का विद्याध्ययन
दिन दिन बुधि होड गुन बढौं । अब हू निज सिंपगुर पै पढौ । राजा भली भली वरनई । कुवरि उठाइ उछगह लई ॥२०४।।