________________
४
इति श्रीपालचरित्रे महापुराणे भव्यसंग मंगलकरणं ॥ बुधजन मन रंजन पातिन गंजन सिधचक्र विष दुषहरणं ।।१८३ ।।
भुवन सुषकारण, भवजल वारण, चौपई बंध परिमलकृतं ॥ सातसँ अंग ताकै संग, श्रीपाल उद्यान भ्रमै ।। १६४ ।।
द्वितीय सर्ग
चौपई
श्रीपाल उद्यान मैं रहे। कुष्ट व्याधि व्यापं दुख सह ॥ इतनी कथा रही इह ठौर । अंतरकथा सुनौ श्रम और ।। १८५ ।।
नोकं करि हौ करो बर्षाांन देस भालबो सो सुषधांम ।
उज्जयिनी वर्णन
श्रीपान चरि
दुःपनि जिह ठो बासुर रैनि । सुबस बसे तहां नगर उजैनि ।। नौ कोसकी वर्क्स चकराड़। बारह कोसो बसे लम्बाई ॥ १८७॥
पुहपाल राजा
I
। पंडिस भव्य सुनौ दे कान ॥ मध्य लोक में प्रगट्यो नाम ।। १८६ ।।
श्रीनिवास महाजन जहां । चौथौ काल प्रवसे तहां ॥ बनय यरण मरिण मंडप जरी प्रतिरवनीक मनोहर खरी ।। १६
I
राजकरै पुहपाल नरेस । तार्क परिगह बहुत असेस | जोधा बहुत सेवता रहूँ । रा संग्राम जुषं निरव ।। १८६ ।। एक छत्र सो राज कराह । ताकी की रति कहीय न जाइ ॥
ज्यो माता सुत उपरि भाउ । त्यो गरिजा प्रतिपाल राउ || १६० ।।
पट्टराभी सुन्दरी
सार्क कामिनि बहुतक गेह । श्रति गुनवंत रूपकी रेह ॥ जो सब नाम ननि के कही । कहत कथा कछु अंत न लही ।११६१ ।।
पाट परधान नांम सुन्दरी । भनौ भाऊ रम्भा श्रीतरी ॥
प्रति सरूप देवंगनां कही। कांमदेव ज्यो रतिपति मही ||१६२ ||