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श्रीपाल चरित्र
गरे षांपरै गावे गीत । पातरि नाच पुर विपरीति ॥ असौ तिहां अषारी होइ । सबनि कोढ़ जाने सष कोइ ।।१३०॥ जो सब कोढ वरनि के कहौं । कहत कहत कछु अंत न लहाँ ।। इह सामिग्री राज कराइ । सगरी सभा जुहारै प्राय ।।१३१॥ कबहूँ न निफर संस बजार। गैर महल के सभा मझार ।। सेवग साह् जुहार जिते । राजे देषि बिसूरं तितं ॥१३२॥ जनमन कह सर्व सति भाउ । एह श्रीपाल महाबल राव । अरु यह दया धर्म परवान । राजनीति पाल गुन जान ।। १३३।। ताको कहा कर्म यह भयो । कुष्ट रोग जाकै तन तयो ।। कछु कर्म गति कहियन जाइ , महानींच नीचनि को राई ॥१३४॥ उत्तिम की मध्यम गति करें । मध्यम को उत्तिम पद धरै । नृपस्यों ते नहि कथून हाइ : घर र गास, पिकाह ।।१३।। महा कोढ राजा के अंग । कोढी अंग सात से संग ।। बह दुर्ग घता बढ़ी अपार । फैलिंगई सब नगर मझार ।।१३६।। जब बयारि बढे नहि घट । तब नांक सवही की फट ।। बहुत बात को कई बढाइ । कोऊ नगर न भोजन खाइ ॥१३७।। कोऊ विनती सके न मोडि , बहुत लोग गए घर छोडि । घर घर एक बुलावो फिरयो । रयति लोग नगर को घिरयो ।।१३०॥ जो पात्र सो काही विचारि । महा दुष क्यों सके सहारि॥ कोऊ कहै भजी हरिवार । जैसे राजा लह न सार ।। १३९॥ कोक कह श्री न करेहु । आइस मांगि राइ मैं लेहु ।। बनिये भाजै छाडि धनाम । मरिह दुष देषि बेनाम ॥१४॥ प्रापस मैं सब मती फरांहि · प्रावो वीरदमम पंजाहि ।। जों प्राइस है हम जोग । सोई मांनि लेहु सब लोग ।।१४।। मोती रतन थार भरि लए । सब मिलि बीरदमन ५ गए । जाइ भेट ता प्राग धरी । नाइ सीस सब विनती करी १५१४२।। महादुःष सबको संदेह । स्वामी हमकों आइस देहु ।। तेरै देश अंत कहूं रहैं । राजा सौं त्यो निकसन फहूँ ॥१४३।।