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________________ बाई अजीतमति एवं उनके समकालीन कयि ३५ ताकी सेव सातस बीर । ते बहु सह जूझ की भोट ।। ताको कीरति भई अमेस । कीन बसि और सब देस ॥१७॥ धर्मरूप राजा व्यौहर । परधन परत्रीय लोभ न करे ॥ दर्जन सकल जीति बसि कीए । महा दंड तिन पंत लिए ।।११।। श्रीपाल के कुष्ट रोग होना कोउ अबर न ता अंगव ।एक छत्र प्रगट्यो चक्का ।। ऐसी भांति काल कछु जाइ । पूरब पाप उद भयो प्राइ ॥११६।। कुष्ट व्याधि राजा कौं भई, हरे हर सो बरषत गई ।। झंग सातस है अति नेह सिनहू कोड बियापी देह ।।१२०१ वह राधि पीडियो सरीर । होइ दुगंधा बहुत समीर ॥ कोठ उमारे वेडयो राइ । नासि अंगुरी गरि गए पाई ।।१२१।। रक्त पीत जाक तन दीस । द्वार चौर राई के सीम ।। झर प्रसेदु छ। सो गहै । देह दाध भंडारी रहे ।।१२२।। स्यांम दाध मार्क असमान । सो राणं हि खवावं पान ।। मरदन कर जाहि नही कान । पजुत्रा करवाब असनांन ।।१२।। वरण 'फबारी घरे मंजेज । भूपति वी सु विछावै सेज ।। कंठ गुम सोहै कुतवार । मूरज वा सूर अवसार ॥१२४।। जाको कई कहु गर्यो सरीर । सो नर व माहि उजीर ।। और दुरगंधि मुप याय जन । सो निरंद को है परनि ।।१२५५॥ काछ दाध जाके तन प्राहि सोदल ये सब देखे चाहि ।। बहे नांक अरुमनी मनि करें । ते राजा के पानी भर ।।१२।। जिनके गात गर बसि वार । पाइक देषिए अपार ॥ से सिरतेरु पाइते गले । ते निसांन बजां भले ।।१२७।। जाकै रकत बेव तिस वास । सो नर बैंक प्राहि खवास ।। बाके हरष गिरा बढ़ कर । बहुतक जन ते नृतहि करै ॥१२८।। महा वाउ बादर अनकार । जरदौनिया बजावे तार ।। जाऊ मापी लागै दौरि । बीन बजाद तार मरोरि ॥१२६॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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