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श्रीपाल चरित्र
श्रीपाल की शिक्षा
मुनिवर पास पटन सो गयो। ऊत्रकार प्रथम ही लयो ।। गण अक्षर मत्तह भयो लौंन । तर्फ वितर्क भयो कोक प्रबीन ।।१०५ । सामोदिक सीष्यो सुभ सार । पढ्यौ ग्रंथ व्याकरन कुमार ।। सबही विधि मो कला विज्ञान शीष्यो वहु सो प्रर्थ पुरान ।।१०६।। काना बहतरि प्रगट विनांन । चाद करे गंधर्व समान ॥ हय गय वाहन रथ' विधि पाहि । गुन छतीस प्रसिद्ध ताहि ।।१०७।। जल तिरिधी सीष्यौ तिह बार । सर्क वितर्क पढयौ अनिवार ।। जोतिग बंदक गुन सीषियो । पागम अध्यातम पछि नियौ ।।१०।। हैं प्रसिद्ध विद्या पद जिती : पयो कुचर भूनियर व तितौ ।। जोचन करि मारुदयो अब । राजा चित उल्हया तत्रै ।।१०८।। महाबली श्रीपाल सुजान । रुपवंत अरु गुनह निधान ।। अति प्रचंड कोटीभदु सोइ । जाकै दरस अघ क्षय होड ।।१०६।। वावहू' मलि न मा कूर 1 साहस धीर धरम को मुर ।। अंसी जुगश काल' कछु भयो । राजतिलक श्रीपालह दयौ 1॥११०॥ भयौ निगल्ल को कह बढाइ । माप काल वसि हूयौ राइ ।। है इंकार कियो संसार । बीरदमन दुख कियो अपार ।।१११।। श्रीपाल राजा दुप ब्रह्मौ । हुदै विचारि सोच करि कलौं । तीन नोक देष्यों प्रथगाहि, इहै मारग' सबही फौं पाहि ।।११२॥ यह विचारि अपनं जिय धर्यो । मन को सोक दूरि सव कर्यो ।। कूदग्रमा रानी समभाइ । देषि विचारि रीति यह माइ ॥११३॥ जो प्रथ माता कीजे सोग । तो सब हंस देस में लोग ।। छत्री कुल जाको अवतार । श्रीपाल यों कहे कुवार ॥११४॥ ताहि सोक पूछिएन जानि। बहोत कहा हाँ कहौं वधानि ।। मोते का होइगी जिसी । मांजी सेवा करिही तिती ॥११५।। • वात सुनत सुप ताका भयो । हृदै सोका माता को गयो ।। करे राज श्रीपाल प्रचंड । लीयो सब राधनि पैदर 1११६॥