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बाई अजीतमानि गवं मके मालीन कवि
२४ज
पपने पूर्व कृन कर्मों को रोती है और निम्न प्रकार पश्चाताप करती है :-..
के मैं पर पुरूषह मन घरयो, के मैं नायस् जीयने टर्यो। के मैं काहे को वित्तु हरयो, के मैं विजन भात्रन करो ।। ११८१।। के मैं निधी जिन पर धम, के मैं अशुभ कमायो कम । क मै जीव दया परहरी, कं हूं कई प्रग्नि में जरी ।।१२८२।। के मैं ! गुरु सेइको, के. मैं सीनियो के मैं कहूँ उघारी अंगु, के मैं किया दरतु कौं मंगु 11१२८३।। के गुरू काही न लीनो मानि, के मैं भी बोल्यो जानि ।
के मैं परगुण मेयी पाय, के हूं बूडी नदी मैं जाय ।।१२८४।। श्रीपाल का व्यक्तित्व पूरा क्षमाशील था । ण को जीतने पर भी वह उसे दामा कर दिया करता था। उसने सर्व प्रथम समुद्री डाकुओं को धवल सेठ के जहाज पर हमला करते समय पकड़ कर लाने पर भी उन्हें क्षमा कर दिया । तथा स्वयं घवल सेट को उसे समुद्र में गिरा देना न भांडों द्वारा पुत्र मतलाने के षड्यंत्र का पसा लगने पर भी प्रवल सेठ को अमादान दे दिया । श्रीपाल ने अपने जीवन में कभी ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे उसके जीवन में कलंक लगता हो। इस प्रकार श्रीमान चरित्र शिक्षाप्रद काध है जिसमें एक प्रोर कर्मवाद (भाग्यवादा की प्रधानता है तो दूसरी पोर पुरषार्थ को भी गौरा नहीं किया गया है। स्वयं श्रीपाल राजा होने पर भी वैभव, धन संपत्ति प्रर्जन के लिए देशाटन करता है । यह अपने सिद्धान्तों पर चलता हैं और उनका कभी उल्लंघन नहीं करता ।
योगान का अन्तिम जीका माधु जीवन के रूप में व्यतीत होता है। अपने अपार राज्य एवं वैभव, प्राट हजार रानियों के भोगों को हेय समझ कर मुनि दीक्षा धारण करता है अर्थात अन्तिम जीवन में त्याग को प्रधानता देता हैं। जो वर्तमान भौंतिक जीवन व्यतीत करने वालों के लिए अच्छा उदाहरणं है । मानव को अपनी वृद्धावस्था में त्यागमय जीवन अपनाना चाहिये इसी में उनका कल्याण और प्रागामी जीयन के लिए शुभ लक्षण है । विद्याध्यन
श्रीपाल को आठ वर्ष का होते ही विद्याध्यन के लिए मुनि के पास भेजा गया जहां उसने मोकारमंत्र. अक्षर विद्या, मंक विद्या (गणित), न्यायशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, व्याकरण, ज्योतिष, वैदिक प्रादि विद्यायें सीखी। यही नहीं जल में तिरना. घुड़सवारी, हाथी की सवारी, रथ की सबारी एवं संगीत प्रादि की विद्यायों भी अध्ययन किया। इसी तरह मैनासुन्दरी एवं सुरसुन्दरी ने भी विद्यायें सीखी इतना अवश्य है कि मैनासुन्दरी ने जिन मन्दिर में शापिका के पास जाकर जैन धर्म