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________________ २४छ श्रीपाल चरित्र श्रीपाल पुण्यशाली था। इसलिये जब विदेश प्रस्थान के पश्चान वह पुरपट्टन नगर में पहुंचा तो उसे सहज में ही तीन विद्यायें सिद्ध हो गयी जिससे उसको विदेश यात्रा में बहुत सहायता मिली। इन विद्यानौं के नाम थे शय निवारिणी, जल तारिणी । प्राचीन काल में मंत्र विद्याओं पर गन मामान्य को पूर्ण ग्रास्था श्री और वह उनके चमत्कारों से पूर्ण प्रभावित थी। श्रवल सेठ का जब सम्न उहाज नहीं ना तो में मनुष्य की बलि देने के लिए कहा गया इससे पता चलता है कि उस समय उपसर्ग निवारण के लिये __ मनुष्य' तक की बलि देने का प्रचलन था। बलि के विमा श्रीपाल से युवक को पकड लिया रया । तात मन में उपज्यो मदेहु, मंत्री मंत्र विनारयो गहु । एक गुरूस बलि वीज धान नब यह चल परोहन धाप ||७७३॥ प्राचीन काल में समुदी लूटेरे यात्रियों को लट निया करते थे। वे जहाज नक डूबी दिया करते थे । धवल सेठ को जहाज के ऊपर भी नटेरोन हमला कर दिया था जिसके कारण पूरा व्यापारिक संघ ही संकट में पड़ गया था । यदि श्रीवाल नहीं होता तो पत्ता नहीं धवल सेठ की क्या हालत होती। श्रीपाल कोटिभद्र था । पुण्यशाली । इसलिये उसके हाथ लगते ही वन के किवाड़ खुल गये । जिनके खुलने का अर्थ था यहां के राजा की कुमाी रैमजूमा के साथ विवाह । श्रीपाल का भाग्य चमक उठा पीर विदेश में उसे सफलता पर सफलता मिलने लगी । इसके पूर्व वह जहाज बारे अपने बाहुबल से चलान लुटेरों को पत्रड़ ने में सफलता प्राप्त कर चुका था। यह तीसरी मफलता उसके अश्वल भविष्य के लिए वरदान सिद्ध हुई । श्रीपाल में रभ मंजूमा जैसी मुन्दर राजकुमारी ही नहीं किन्तु विवाह में अपार सम्पत्ति भी प्राप्त की इसका एक वर्णन पढ़ने योग्य है : नमंजुसा मुरगह बिसाल, भोपाल व्या ही मुकुमान ।। सोयो दीगो तूठि के राय, चौर छन हृय गय प्रधिकाय ।।६।। दोनो मणि रत्नान भण्डार, दासी दास ग सुभसार ।। और बहु को य हे बट्टा, दीनो नोतन महल कराय १८६३।। श्रीपान को जीवन में फिर संकट मा जाता है और वह समुद्र में गिम दिया जाता है ! उस समय रंन मंजुमा के दुल का कोई वाह नहीं रहता। वह भी
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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