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बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि
की शिक्षा प्राप्त की जिससे उसके मन में कर्मवाद की प्रधानता स्वीकार करने का प्रभाव पड़ा और सुरसुन्दरी ने 'शिवगुर" से शिक्षा प्राप्त करने के लिए उसके दूसरे ही संस्कार बने। इस प्रकार जैसा शिक्षक मिलता है बालक के उसी प्रकार के संस्कार पड़ जाते हैं। मैनासुन्दरी ने जिस प्रकार की शिक्षा प्राप्त की उसका एक वर्णन देखिए :
जोतिष पढनो सौ परवानि, पागम अरु अध्यातम बानि । सीख्यो तिन संगीत पुरान, नाटिक साटिक कर बखानि ।। तर्क छंद पुत्री पति लियो, छह गसन तिन उत्तर दियो ।
भाषा सोजु अठारह पढी विद्या करि दिन ही नित बढी ॥२२७॥ इस प्रकार परिमल्ल कवि का श्रीपाल चरित्र उत्तम प्रबन्ध काव्य है जिसका जितना गहरा अध्ययन किया जावे, उतना ही श्रेष्ठ एवं सुखद है।