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________________ २४च कविकर परिमल्ल चौधरी १४. सौराष्ट्र से श्रीपाल बहां के राजामों से कर वसूल करता हुआ मरहट (महाराष्ट्र) देश में पहुंचा। १५. उज्जयिनी-महाराष्ट्र से श्रीपाल उज्जयिनी नगरी में पहुंचा जहां । मैनासन्दरी उसकी १२ वर्ष से प्रतीक्षा कर रही थी। १६. चम्पापुरी-उज्जयिनी में बुछ समय अपने श्वसुर के यहां ठहर कर अन्त में वह चम्पापुरी पहुचा। यहां उसका अपने चाचा दीरदमन से युद्ध हुना और अन्त में विजय प्राप्त करके अपना राज्य प्राप्त किया । काव्य को विशेषता श्रीपाल चरित्र अत्यधिक रोचक काव्य है। कवि ने घटनामों के बर्णन के साथ और भी ऐसे वर्णन प्रस्तुत किए है जिनके कारण काव्य और भी सुन्दर बन गया है। श्रीपाल का पूरा जीवन ही कर्म प्रधान है वह भाग्य' के सहारे भागे बढता है इसलिए निम्न मान्यता में वह अपना पूर्ण विश्वास रखता है : विधना जो कछु लिख्यो लिलार, शुभ अरु अशुभ अंक शुभ सार । जैसो निमित्त जास क होई, ताहि मिटाइ सके नहिं कोई ॥३०३।। इसमे आगे कवि और भी अपने भाव निम्न शब्दों में प्रस्तुत करता है :-- पूरव ते पछिम रवि उव, नर फुनि मेरु चूलिका मुवै । सायर हू पं धूरि उडाइ , भाबी तक न मेरो जाइ ।।३०५।। भवितव्यता में इस प्रकार अटल विश्वास के साथ श्रीपाल प्रागे बहना है । मैनासुन्दरी का भवितव्यता में सबसे अधिक विश्वास है अपने पिता के बार बार पाग्रह करने पर भी वह अपने विचारों में दृढ रहती है और कुष्ट रोगी के माथ विवाह के अपने पिता के निर्णय को सहर्ष स्वीकार करती है। विवाह मंडप में बैठने के पश्चात् जब उसका सारा परिवार रुदन करने लगता है, मौन हो जाता है सब बह साहम पूर्वक कह उठती है कि जिस प्रकार उसकी बड़ी बहिन के विवाह में मंगलाचार गाये गये थे उसी प्रकार उसके विवाह में भी पाये जाने चाहिये : लब सुन्दरी उठि ठाडी भई, निज परियन माता 4 गई। सुरसुन्दरी को गायो जिसो, भोको क्यों नहिं गावौ तिसो ।।१२०६१ पुनी के विवाह में जो कुछ पिता द्वारा कन्या को दिया जाता है उसे हम दहेज संज्ञा देते हैं। मैंनासुन्दरो के विवाह में भी श्रीपाल को ढेर सारा दहेज मिलता है
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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