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बाई अजीतमी एवं उसके ममकालीन कवि
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श्रीपाल द्वारा कुष्टी जीवन यापन, वन में सिद्ध चक्रवत की पूजा से कुष्ट निवारए । कवि के शब्दों में
देस मालबो सब सुख घामु, मध्यलोक मैं प्रगट्यो नाम 1
दुख नयि जिहि है वासर रैन, सुबस मस तहां नगर उन्जनि ।।६।।
४, कौशांबीपुर–श्रीपाल उज्जैन से कोपाबीपुर पहुंचा जहां उसकी धवल मेट से भेंट हुई । यहीं से बह सेट के मात्र आगे व्यागार के लिये गया ।
५.हंस द्वीप यात्रा का प्रथम पढाव । श्रीपाल ने इसी द्वीप में स्थित जिन मन्दिर के वनकपाट खोले थे तथा उसका रनमंजूषा से विवाह हुआ था।
६. कुकूम द्वीप-दलपट नगर—समुद्र को तैरता हुआ श्रीपाल इसी दीप के किनारे पहचा तथा दलपट नगर के राजा द्वारा अपनी लडकी मुरणमाला से उसका विवाह कर दिया । घवल सेठ के सारे द्वार प्रतिवाःर को नका बतलाने पर राजा द्वारा श्रीपान को सूली लगाने का आदेश दिया। लेकिन रैन मंजुषा का पहिचान के कारगा श्रीपान सुनी से बचा तथा पून: सम्मान प्राप्त किया । घवन सेठ को वहीं मृत्यु हुई ।
७. कुण्डलपुर द्वीप-म द्वीप में कुण्डलपुर द्वीप पहुंच कर चित्रग्या के साथ विवाह हुघर ।
८. कंधमपुर-बिनासक्ती का जन्म स्थान |
६. कोकण पट्टन-यहां श्रीपाल ने पहुंचकर पाठ राजकुमारियों की समस्या पूर्ति करके उनके साथ विवाह किया।
१०. पंडीय देश-कोकण पट्टन से श्रीपाल पंडीय देश में पहुचा । ११. मेवार देश-पंडीय देश से मेवाड देश में पहुंचा। १२. तिलिग देश-चोपान की यात्रा का अन्तिम देण |
१३. सोरठ देश (सौराष्ट्र )---ति लिंग देश से श्रीपान वापिस कुकुम द्वीप के दनपट नगर में पहुंचा तथा वहां कुछ ममम विश्राम के पश्चान् रैन मंजूषा, गणमाला प्रादि रानियों के माथ उज्जैन के लिये प्रस्थान किमा। तथा सौराष्ट्र में पहुंचा।