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________________ कविपर परिमल बोपरी बलत राव तूष्यो बिहसंतु, एक हजार बए गजबंश ।। ज्यारि सहस पर ए तुरंग, दीने फुत्र बघर पर ।। प्रनेक देशों में होताहमा श्रीपाल उज्जनी पहन गया जहां मैना सुन्दरी उस की प्रतीक्षा कर रही थी। उसके दीक्षा लेने के समय में केवल एक रात्रि बाकी थी। मैनासुन्दरी के लिये एक रात्रि की प्रतीक्षा भी कोयन हो रही थी। मैनासुन्दरी एवं उसकी सास के मध्य होने वाले वार्तालाप को सुनकर श्रीपाल ने घर में प्रवेश किया। वोनों को बह रात्रि को ही अपने कटक में ले गया और अपनी माता एवं रानी को अपनी विशाल सेना एवं अपनी पत्नियों बतलाई। उसने सबके मामने मैनासुन्दरी को पट्टरानी-महागनी घोषित किया तथा न मन्जूग, गुरगमाला, चित्ररेखा को गनियां घोषित की। मैनासुन्दरी का हदय प्रसन्नता से भर गया और उगने श्रीपाल से निम्न प्रकार निवेदन किया मेरे पिता करम नहि गन्यौ, मानभंग कोगे तासनौं । कंबर पहरि कुहारी कंध, कर पौना को मरी सबंध । अंसी विधि वा मिलि है सोहि तब ही मुम्न उपजंगों मोहि ।। दूत ने तत्काल कर राजा से इसी प्रकार के वेश में श्रीपाल से भेंट करने का प्राग्रह किया । गाजा ने क्रोध में प्राफर दूत को पकड़ लिया। लेकिन मन्त्री के कहने से उसे छोड़ दिया। गजा पहपाल ने उसी तरह श्रीगाल में मिलने की बात मान ली लेकिन मैनासुन्दरी ने जब राजा का मान भंग होता सुना तो श्रीपान से पुनः अपने पिता को रामा के तरीके से बुलाने के लिये कह दिया। दोनों में अब परस्पर मिलन हुमा तो रागें और भानन्द छा गया । राजा पहपाल ने जब मैना सुन्दरी एवं श्रीपाल के वैभव को देखा तो उसके मांखों में प्रांसू बह चलें भोर निम्न शब्दों में मैना सुन्दरी की प्रशंमा करने लगा भी पुत्री सबही गुण मान, सील धुरंधर मुख निधान । तुं प्रति स्थावतं जीय ओम, तो सम भूमी और न कोय । मै तेरो रेल्पो प्रब करम, पर माराध्यो निनवर धरमु । प्रभी श्रीपाल को अपना स्वयं का राज्य पौर लेना था जिसे वह अपने चाचा को दे पाया या इसलिये जब उसने अपना राज्य दूत भेकर मांगा सो उसे निम्न प्रकार उत्तर मिला विशु भुजबल बिनु लगप्रहार, मिनु रए सुरै १ कर प्रसार । जौलों एह करम नहि होइ, तो लौ राज न पाये कोय ।।१९४६/t
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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