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________________ बाई जीतमती एवं नफाली कवि श्रीपाल ने एक बार दूत भेजकर अपने चाचा को समझाने का प्रयास किया सो वह और भी कोश्चित हो गया और दूत को ही मारने का आदेश दे जादादुख दे या निग्रह करो, बेगे खालि काटि भुस भरी ॥ लड़ाई की तैयारियां होने लगी और उसने तत्काल आक्रमण करने का आदेश दे दिया। भाषे मार मार सिंह बार हम गय साजो ले हथियार । यो संग्राम मिटं हम धाइ, जैसे जीवस एक न घाइ ।। १३८८।। यह कहत करी उपरो चढ्यो, कार ले खडग चल्यो रिस बढ्यो, तादेखत ही सर्व जुझार, धाए काल रूप तिहि बार ।।१६७६ ।। मैनिकों की गलियां जब अपने अपने पति को युद्ध के लिए विदा किया तो उन्होंने निम्न प्रकार अपने विचार प्रगट किये कोज प्रिया मांगे रतिदान, हम तुम कंत जनम है श्रान । कोउ कहै दुहुं भुज तनौ, दरसाको पिप बल प्रापनों ।। १६६६॥ कोइ सीख देई कुल भॉम, शु हारि मति श्रावो धाम । बहुत घोस जो खायो माल, स्वामी काज अब कसे हलाल ||२००० कोड कहे संखिनौ नारि, भजियो पोय जो लागि हारि I एक कहै मुतन के हार, अरु पाटंबर वीर प्रभार ।।२००१ || दोनों में युद्ध होने लगा | गज से गज, श्रश्व से अश्व एवं पायक से गायक भिड़ गये । शाम हो गयी लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला । मन्त्रियों के परामर्श मे अन्त में यह निश्चय किया गया कि श्रीपाल एवं बीरदमन में परस्पर युद्ध होने गर जो जीत जायेगा वही राजा पद प्राप्त करेगा। दोनों में भीषण युद्ध होने लगा 1 तब ए कोप चढं दो राइ, भिरे मल्ल ज्यों दोऊ धाय । ater art कर दोज वीर, लौट गिरं परं घर धीर ॥२०२८ । १ २४ से बहुत देर जब गई, श्रीपाल को प्रति रिस भई । ताके बीड पकरं पाथ, प्रति श्रातुर लयो उठाई || २०२६|| धरती पटकन लाग्यो जगं जं ञं जं सबद कोयौ सुर सबै । कुसुम माल नाई ता गरें, इन्द्र प्रर्गव सब यो उच्चरं ॥। २०३१ ।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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