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बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि
है। श्रीपाल को फिर अशुभ कर्मों ने गैर लिया। राजा ने क्रोधित होकर पंडालों को श्रीपाल को मारने का आदेश दे दिया 1
वह मुनि राव कोण प्रति भयो, डलन की प्रांसु रयो । मारो वह जीव मैं मत करो, या पापो से सूरो घरी ।। १५८२ ।।
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इसके पश्चात् नमंजूया से श्रीपाल का पूरा परिचय सुनने के पात्रा ने श्रीपाल से क्षमा मांग की और फिर से नगर में उसका जोरदार स्वागत किया पया। इसके पश्चान् तो विभिन्न द्वीपों से श्रीपाल के सामने विवाह के प्रस्ताव प्राने लगे और श्रीपाल ने भी सभी प्रस्तावों को स्वीकार कर अपनी उदारता का परिचय
दिया |
श्रीपाल को राजकुमारियों से विवाह करने से पूर्व उनकी समस्या पूर्ति भी बरनी पड़ी। कोरून पट की माठ राजकुमारियों द्वारा रवी गयी समस्या का श्रीपाल द्वारा निम्न प्रकार से पूर्ति की गयी ।
समस्या — जहां सामु वहां सिधि (श्रृंगार गांरी द्वा
पूर्ति सत्त सरीरह प्रापती, प्रगटें ओर सुबुधि ।
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सीन सुभावन परहरं, जहां मासु तहां सिधि ॥१७१८ समस्या — गोपेत सबु (पउलोमी द्वारा)
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पूर्ति नवि पूजा नवि दान हित अभियानो यो तव्य । वृथा जनम गवाइयो, गयो पेता सब्व ।।१७१६ समस्या- ते पंचामर सिंह (पलोमी द्वारा ) पूर्ति सील बिना जोबि तह, तिम की देह ममीन जे चारित्र निर्मला ते पंचायत सिंह ।। १७२० । समस्या का विवाज लीन
रावन विधा सोझियो, दशमुख एक सरोष | तास माय धधे परी, कासु विवाच खी ।।१७२२॥
इसके पश्चात् और भी देश की राजकन्याओं के साथ श्रीपाल ने विवाह कर लिया । एक दिन प्रधानक उसे नैनासुन्दरी की याद आ गयी धौर किया हुआ वायवा । वह तत्काल गुणमामा और रंनमंजूषा के पास भा गया और वहां से चलने की तैयारी कर ली. दलपट्टन के राजा ने उसे निम्न प्रकार सैन्य बल दिया—