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________________ २२ कविवर परिमल चौधरी मुरा पालते सुधि सनु जाप, मा होनई पानिपुलाम ॥१२५०॥ कामी जन पंच परमार, कामी जन मन भाये गारि। कामो मन छार गुरु रोध, पान माना गपूर वेर ॥१३ कामी जन जन उत्तटो रोति, उसम तवं मध्यम सौ प्रोति । कामी जाम मितुनबंधु, मेनानि देख सवा निरंधु ।।१३४८।। श्रीपास फिर संकट में फंस जाता है। धवल मेठ द्वारा वह समुद्र में गिरा दिया जाने के पश्चात् वह सागर तैरकर दूसरे वीप में प्रा जाता है । वहां सागर तटभर गजा के सिपाही उसका स्वागत करते हैं । और सागर वर कर मात्र के उपलक्ष में गजा माग अपनी लडकी गुणमाला से उसका विवाह कर दिया जाता है। ये दोनों कुछ समय तक मुम्ब से रहते है लेकिन जब धवल मेठ का जहाज उसी जीप में प्रा जाता है। श्रीपाल को देखकर घबरा जाता है और एक नयी चाल वेसता है। वह भांडों को बुलाकर राज दरबार में श्रीपास की भांड पुत्र सिद्ध कर घेता है । जिस व्यकि के पुरे दिन भाने लगते हैं नो अपनी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है तथा वह धर्म का मार्ग छोड़ देता है । कवि ने इसका अच्छा वर्णन किया है... यह मुनि सेठ विसरतवं, जिनस हाल होतु मर जये। पहले मति ताकी कि जाय, बबस छुहमाय ।।१५३७॥ तोब सतुवते पुमि सीम, पाँच्नु छोनि लेप नगरीनु । महिमा ताके पास न रहे, मानु साह तणि मारगु है ।।१५३८१ संचम सोलु तजे अमिताहि, रमा बिकु बल चित शाहि । पहले गुरमति बैस चाय, मेरं सुभमंट लगाय। बहोरि होय पाया सौ प्रोति, बहोरि असरय कर बसि नीति ॥१५४०।। भांडों ने राज्य सभा में श्रीपाल को अपनी जाति का तथा अपना लहका सिद्ध कर दिया । भांडों द्वाग किये हुग प्रदर्शन को देखिये को लागि पोषय, कोर मुख पौधे विसाय । कोड ताक पर पाय, कोड वाह गर्दै भतार । कोल ताक पौर्य मंगु, ताहि देहियो समु संगु । कोर को धनि भूपराल, पाको भयो जहाँ प्रतिपाषु ।। भाहों ने विविध प्रकार से राजा को समझा दिया कि श्रीपाल उन्हीं का पुत्र
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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