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________________ कविवर परिमल्ल चौधरी कोई उल्लेख नहीं किया । १८वीं शताब्दी में होने वाले पंडित वख्तराम साह ने चौरासी जातियों के नामों में बरहिया जाति का कोई उल्लेख नहीं किया लेकिन यदि बारहसनी जाति ही बरहिया जाति का दूसरा नाम है तो इसका उल्लेख तो यत्र तत्र मिलता है । फिर : १५४:: में एक निमोस्त में बरहिया कल का उल्लेख अश्यय मिलता है इससे यह तो स्पष्ट है कि बरहिया जाति दिगम्बर जैन धर्मानुयायी थी और उसका ग्वालियर एवं मागरा क्षेत्र में अच्छा प्रभाव था । परिमल्ल को अपने पिता एवं बाबा का कब तक प्यार मिला तथा तब तक उनकी छत्रछाया में ग्वालियर में रहे इसका कोई उल्लेग्न नहीं मिलता लेकिन वे ग्वालियर छोड़कर अपने परिवार के साथ आगरा प्राकर रहने लगे थे इस घटना का कदिने अवश्य उल्लेख किया है। आगरा में वे शल्प रहित होकर रहने लगे थे इसका कवि ने निम्न पंक्ति में उल्लेख किया है। "ता सुत कुल मंडन परिमल्ल, वसं प्रागरे में तजि सल्ल" आगरा में उनका जीवन शान्तिपूर्ण था । जब उन्होंने श्रीपाल चरित्र की रचना प्रारम्भ की थी उस समय देश में अकबर बादशाह का शासन था । कवि ने अकबर के शासन काल का उल्लेख ही नहीं किया किन्तु उसके तेज एवं प्रताप की भी प्रशंसा की है। उसने समस पृथ्वीतल वो अपने वश में कर लिया था तथा उसकी चारों ओर दुहाई फिरती थी। इसी के साथ परिमल्ल कवि ने बाबर एवं हुमायु का भी उल्लेख किया है. बाबर रातिसाहि होई गयो, तासु साति हमाऊ भयो। ता सुत अकबर साहि प्रधान, सो तप तप्यौं दूसरी भान ॥३२॥ ताक राज न कहूं अनोति, बसुधा सकल करी वसि जीति । जसदीप तास की प्राम, दूी अवरन ताहि समान ॥३३॥ रखमा काल अधिकांश प्रशास्तियों में रचना समाप्ति के समय का उल्लेख होना है लेकिन श्रीराल' चरित्र में ऋषि ने रचना के प्रारम्भ करने का उल्लेख किया है जो मम्वत् १. बुद्धिविलास--वस्तराम साह पृष्ठ संख्या--८६ २. संवत् १५४५ वर्षे वैशाख सुदि १. चंद्र दिने थीमूलमंघे .....भ. जिनचंद्रदेवाः बरहिया कुलोद्भव साहु लेखे भार्या कुसुमां-तेन अर्जुनेनेदं प्रादीश्वर विम्यं स्त्रपूजनार्थ करापितं । भट्टारक मम्प्रदाय-पृष्ठ संख्या १०४
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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