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________________ बाई मजीतमति एवं उसके समकालीन कवि १६५१ प्राषाढ सुदी पष्टमी शुक्रवार है। रचना समाप्त कब हई प्रोर उसमें कवि को कितना समय लगा इसका कवि ने कहीं भी उल्लेख नहीं किया । संवत् सोलहस ऊपर, सावन इक्यावन माग। मास पषाढ पहतो माई, वर्धारित को कह बढाइ ॥३०॥ पक्ष उजाली माठ जानि, सुकरवार पार परवानि । कवि परिमल्ल शुष हरि चित, प्रारंभ्यो श्रीपाल परित ॥३१॥ श्रीपाल चरित्र के मतिरिक्त कवि ने मौर कितनी रचनायें निबर की इमका भी कहीं नामोल्लेख नहीं मिलता पौर न शास्त्र भण्डारों में परिमल्ल की श्रीपाल चरित की मतिरिक्त कोई रचना प्राप्त हो सकी है। जिसका अर्थ यही है कि प्रस्तुव कृति ही कवि की एक मात्र कृति है जिसको उसने अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में लिली थी। श्रीपाल परित को पूर्व कृतियां जन प्रम में श्रीपान का जीवन अत्यधिक लोकप्रिय है । सिक चक्र पूजा के महात्म्य के कारण श्रीपाल का कुष्ट रोग दूर हुभा पा इसलिये पूरा समाज श्रीपाल और मैना सुन्दरी के पावन जीवन से प्रभावित है और यही कारण है कि प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत एवं हिन्दी सभी भाषामों के कवियों ने श्रीपाल चरित को कविता बय करने में अपना गौरव समझा । अपभ्रंग भाषा में निबद्ध जयमित्रहल, पंडित न रसेन एवं पंडित रइधू के सिरिवाल परिउ' पर्याप्त लोकप्रिय रहे है । संस्कृत भाषा में मट्टारक सकलकीति एवं पंबित नेमिदत्त के श्रीपाल परिव समाज में चर्चित पन्य रहे हैं। हिन्दी भाषा में परिमल कवि के पूर्व ब्रह्म जिनदास एवं पा रायमल्ल (संवत् १६१५) के नाम उल्लेखनीय है। यही नहीं परिमन के साथ माथ भ. बादिचन्द्र ने भी जगी वर्ष (संवत् १६५१) में श्रीपाल प्राध्यान लिखकर समाज में श्रीपाल के जीवन में प्रेरणा लेने का प्राह्वान किया। लेकिन जिवनी लोकप्रियता परिमल के श्रीपाल चरित को प्राप्त हुई उत्तनी अन्य कवियों के काथ्यों को नहीं मिल सकी। यही कारण है कि राजस्थान के मास्त्र भावारी में कवि के धीपाप परित की पाण्डुलिपिया सर्वाधिक संख्या में मिलती है । अभी तकनपलब्ध पाण्डुलिपियों में साहित्य गोष विभाग (वर्तमान जैन विद्यासस्थान १. देखिये - राजस्थाम के गम शास्त्र भण्डारों की प्रप भी भाग चतुर्ष पृष्ठ संख्या ७७३.
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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