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शग सामरी नमो नमो पास जिणंदह पाय नील बरण शुभ सुदर काय, पूजतां पातिग जाय ।।१।। अश्वसेन वम्मादेवी नंदन वेदन, जन जन प्राधार । सुर नर फणीपती खगपती वमली करे जिन जय जयकार ॥२|| नमो।। नयर वणारसि जनम्यो एह प्रभु, सतगुरु सतमु प्राय । हस्ता नव सोहि उन्नत काय, इक्ष्वाकवंस को राय ॥३॥ घाति अधाति कर्म सबनर्जी, पोहोती मुगतीवास । करि जोडी बाइ अजितमति कहि, पूरबो हमारी प्रास ||४ानमो।।
४. इतिहास परक घटनाओं का वर्णन
श्री वृषभनाथ निधारी मरीचि अनेक दर्शन अनेक मतनी स्थापना कीधी। भरत चक्रवत्ति हमनी स्थापना कीधी । श्री सीतलनाथ पछि पनि यागनी स्थापना कीधी। पहिलि मुशालाएगिम दश कु दाननी स्थापना कीत्री। श्री पाश्नायनिवारि पहिताश्रवस्य शिष्य अत्रीको ति ते रो बुद्धनी स्थापना कीधी । मास मद्यना दोष न मानि । श्रीमहावीर निवारि ममक पूर्ण मुनीस्वरि तकनी स्थापना कीवी । राजा वीक्रम 'पलि वर्ष १३६ गते भद्रवाहु शिष्य प्रत्याचार्य तास शिष्य जिनचंद्रेण स्वेताम्बरमी स्थापना वीधी। स्त्रीनि मोक्ष गृहीनि मोक्ष । तीर्थकर ने आहार न्याहार रोग वस्त्र फेन लीनि उपसर्ग गर्भ संचार कहि । तीर्थकरी करी कहि महावीर ब्राह्मणी गर्भ संचार कहि । मांस भक्ष गहे प्राहारनी लोतिनमानि । वर्ष २०५ जासे श्री कलसेन प्राचार्य प्रापुनी गच्छनी स्थापना की थी। पछि वर्ष ५३६ गते श्री ज्यवाद शिव दज्रनंदी द्रावर संघनी स्थापना कीधी । बीज मन्न पासी सचीत्त न मानि ।क्षेत्रा दौसावद्ध न मानि । वीक्रम पछि ७५३ बिनयसन शिष्य कुमारसेन सन्यारा मंग करीनि काष्ट संपनी स्थापना कीधी। पीछि काठण चमरनी लीधो । स्त्रीनि पुनरपी दीक्षा । अलकनि वीरचरी । दृहु अगावत काहि । वीऋय पछि २०० जाते मधुरत्या नाममेने माग गच्छन्नी स्थापना कोधी । नपीछीया । दक्षण देसे पिझ देसे पुत्वालावती नगरे श्रीरचंद्र मुनिना तेन करीप्यति भोलिसंघ । वीक्रम फ्छी वर्ष १८०० जाते कीया वीपरीत करीस्यती। संवत् १६५० वर्ष पंचमी दिने लखीतं बाई अजीतमनी निज कर्मक्षयार्थ ।।