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________________ १४ शग सामरी नमो नमो पास जिणंदह पाय नील बरण शुभ सुदर काय, पूजतां पातिग जाय ।।१।। अश्वसेन वम्मादेवी नंदन वेदन, जन जन प्राधार । सुर नर फणीपती खगपती वमली करे जिन जय जयकार ॥२|| नमो।। नयर वणारसि जनम्यो एह प्रभु, सतगुरु सतमु प्राय । हस्ता नव सोहि उन्नत काय, इक्ष्वाकवंस को राय ॥३॥ घाति अधाति कर्म सबनर्जी, पोहोती मुगतीवास । करि जोडी बाइ अजितमति कहि, पूरबो हमारी प्रास ||४ानमो।। ४. इतिहास परक घटनाओं का वर्णन श्री वृषभनाथ निधारी मरीचि अनेक दर्शन अनेक मतनी स्थापना कीधी। भरत चक्रवत्ति हमनी स्थापना कीधी । श्री सीतलनाथ पछि पनि यागनी स्थापना कीधी। पहिलि मुशालाएगिम दश कु दाननी स्थापना कीत्री। श्री पाश्नायनिवारि पहिताश्रवस्य शिष्य अत्रीको ति ते रो बुद्धनी स्थापना कीधी । मास मद्यना दोष न मानि । श्रीमहावीर निवारि ममक पूर्ण मुनीस्वरि तकनी स्थापना कीवी । राजा वीक्रम 'पलि वर्ष १३६ गते भद्रवाहु शिष्य प्रत्याचार्य तास शिष्य जिनचंद्रेण स्वेताम्बरमी स्थापना वीधी। स्त्रीनि मोक्ष गृहीनि मोक्ष । तीर्थकर ने आहार न्याहार रोग वस्त्र फेन लीनि उपसर्ग गर्भ संचार कहि । तीर्थकरी करी कहि महावीर ब्राह्मणी गर्भ संचार कहि । मांस भक्ष गहे प्राहारनी लोतिनमानि । वर्ष २०५ जासे श्री कलसेन प्राचार्य प्रापुनी गच्छनी स्थापना की थी। पछि वर्ष ५३६ गते श्री ज्यवाद शिव दज्रनंदी द्रावर संघनी स्थापना कीधी । बीज मन्न पासी सचीत्त न मानि ।क्षेत्रा दौसावद्ध न मानि । वीक्रम पछि ७५३ बिनयसन शिष्य कुमारसेन सन्यारा मंग करीनि काष्ट संपनी स्थापना कीधी। पीछि काठण चमरनी लीधो । स्त्रीनि पुनरपी दीक्षा । अलकनि वीरचरी । दृहु अगावत काहि । वीऋय पछि २०० जाते मधुरत्या नाममेने माग गच्छन्नी स्थापना कोधी । नपीछीया । दक्षण देसे पिझ देसे पुत्वालावती नगरे श्रीरचंद्र मुनिना तेन करीप्यति भोलिसंघ । वीक्रम फ्छी वर्ष १८०० जाते कीया वीपरीत करीस्यती। संवत् १६५० वर्ष पंचमी दिने लखीतं बाई अजीतमनी निज कर्मक्षयार्थ ।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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