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पाई अजिप्तमती एवं उसके समकालिन कवि
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के वार राय प्रतापह ठाय । के बार पालो पागल' पलाय ।। के वार काम रूप एम जोय ! रूप बिहीण के बारें होय ॥१३।। के बारें उत्तम कुल हो । के बारे नीच गोन यिम जूयो ।। कं वारे हवो जीव जीव बलीण । के वारि रांकह वो दीग ।।१४।। प्रार्यखंड म्लेछ खंड मझार । नरभव पाम्यो जीव के बार ॥ धनहीन हवो बली धनवंत । हदो श्रोत्री चंडाल दुरंत ॥१५॥ भवगति दुकह जाणो कोटवाल । सोक बिमोग संताप विकराल ।।
तिर्यंच गति वाष सिंघ ज हुवो । तृण चर रजाणी जीव मूरो ।।१६।। नरकों के दुःख
रत्नप्रभा प्रादि नरक उपन । छेदन भेदन घणं संपंन ।। नारकी माहोमाहि छदे तन । भूख्य घरणी मले नहीं सीथ अंन ॥१७॥ तरसें जाणे सायर सोलबो । पण पावयें नहीं जल बिदुवो ।। गीरी समो लीह गोलो गली जाय । एआबू उष्ण ने सीत सहिवाय ।।१८।। सहथ बीछी बलगायी घणो । दुःख ऊपजे मृतीका स्पर्स तणो । सूला कंटक मंडित मही : म भाग्यमानी नही ।।१६।। मृतिका गंध सही मध्य जाय । मुखें बल यो तेह ज खाय ।। बेतरणी रुधीर भय नीर । पीतो मल तो पाडम रीर ॥२०॥ करवतें नारकी छेदे काय । ए कलर अहनू करी पाप ।। एक भगन थंभ सू करें भेट । साते व्यसन तणां फल नेट 11३१२॥ पलयो प्रसीपत्र बन तलि जाय । पत्र पडता छेदें काय ।।
गिरि प्रत्येगयें गिरि टूटी पडे । जीव में नरके कम एम नष्टि ।।२२।। तिर्यस्च गति के बुःख
वली तिर्यच माहिं भमतो जोय । जलचर थलचर वली वली होय ।।
नभवर गरूा भेरंड आदि भम्यो । मूख तरस छेद भेदें दम्यो ।॥२३॥ देव गति के बुल
सुरगति पाम्रो मानसीक दुग्न । म भमतो किहीं नहीं ललो सुख ।। इम जारिण बोहो गती संसार । मंडमें कर्म नदयावो अपार ।।२४।। बहू परी बेख सेवाडे जाण । जीव नृत्य कीनि नाचाये वताए । इम जीबि जीव सिम वली मरे । घाबर जंगम माहि एम फरे ॥२५।।