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________________ २५६ यशोधर रास संसारी जीव यिम संसारथी बीहू घणं । विषय सौख्य नेहू अवगणं ।। नारभेद बली सप प्रापर। पर घर पासुक भीक्षा करू ।।२६।। बनें नीरंजन ठामे बसू । प्रागम तत्त्व घरणं अभ्यसू॥ धर्म कहूँ वली मौनि रहूं । निद्रा जीतू मोह निग्रह्म ॥२७॥ क्रोध मान माया लोभ त्य। कपट हास्य रति अति न भजू ।। चिता सोक उद्वेग न धरू । मद तरणों मद हूं दूरि करूं ॥२८।। अंष नारी नीहालचा । हृदय मून्य अवगुण जाणवा ॥ राग गीत सूबहे रो जाण । पर मपयाद मूंगो बखाण ॥२६॥ कुतीरथ जाषा ने पंगली । कामकेलि बिखय दलो ॥ भाश्रव्यो अधेसन घेतन तनु होय । बेसने वहीयि सकट इम जोग ।।३०।। वृषभ विना सकट नवि चली । तिम तनु चेतन सरिसोमलि ।। जीब अन्य फलेवर अन्य । इम लहि दिगंबर हवो धन्य ॥३१॥ परने ननद मोच ईस्टत । बगानामत रस पीयू' नीत ।। ग्लासरीद्र दाए मुदुर । झील धर्म शुक्ल ध्यान पूर ॥३२॥ केवली कहयो लीयू प्राहार । रुघू हूँ पापाथव द्वार 11 इम यंद्री बल ने जीतऊ । कर्म कलंक नहीं छीपऊ ॥३३॥ कोतवाम का पुन प्रश्न कोटवाल इम जपे चंग । गोस्तन मूकी दहि कुरण शृग ।। ठेली कनकथाल मिष्टान्न । कवरण करि वीजा पिर मन ||३४|| प्रत्यक्ष संसार सूखनि यजि । मूरख जे मोक्षकारण भनि ।। विण छत्रि छाया नदि होइ । विरण जीवे मोक्ष पावे कोय ।।३।। फोकि देह संतापु नाज । म कहा करु तु सीमि काज ॥ देह जीव ए भिन्न न होय । जिम तर कुसुम परीमल जोय ॥३६॥ फूल विनासे गंध विनाश 1 तिम तनु नासे जीव निरास ॥ भूत चोहो बंधायो देह । पवन योगि यंत्र पिर फरे एह ।।३।। गुड महु छाल उदक पावडी । मलि उन्माद सक्ति तिन घडी ॥ तिम ए जीव वेहें बार कहिवाय । किहां थी न माची किहां थी न जाय ॥ 5॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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