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________________ २५४ पशोधर राय प्रणाम करयो बिनय करी । भव्य जागी मुनिराय !! धर्मभुधि तेहनि कही । कपट रहीत गुण ठाय ।।११।। मास बोपईनी कोतवाल मुनि का उत्तर प्रत्युत्तर चंडफरमा योल्यो कोटयास । धर्म बुधि सी कही विसाल ॥ ते अझनें छि सदा मुमी जाण । भेद कहूँ तेहनो बखाण ।।१।। घमं धनुष पर चगुण होय होय । बाराह मोक्ष के नित नित जोय || तेह मणी ब्राह्मो धर्म इम लहूं। कवण विशेष वचन ती का ॥२॥ मनिबर बोल्यो मधुरीय बाए । नामि प्ररथ न होये जाण ।। हेम धतूरो कनक कहेवाय । पण गुण जाणी वीसेख जणाय ।।३।। मुनी कहि धर्म भेद छि भला । थोरथ सभिलो का केटला ॥ संसार माहे पडतां जेह । धारे धरम कहीजे लेह ।।४॥ वती तहाँ सरीरे दीसो कांक्षीण । बस्त्र रहीत को दीसो दोए ॥ मल मलिनकोतनु तह्म तरणो । चालो वस्त्र भूषण दीयू घणो ॥५॥ भूम्य समने खेदापि देह । सीत उठरण लागि बली रह ।। स्नान वीलेपन पर आदरो । फोकि वाघट ती काय करो ।।६।। मुनि का उपदेश मुनीवर बोला मधुरीय वाण । सांभलो कोटबाल सुजाण ।। वस्त्राभूषण घर भवे भवे लयो । पण रत्नत्रय कहीअन ब्रह्यो ।।७।। मू घ्याउ जे का वचन 1 ते भेद कहूं सुणो सज्जन ।। जीव कर्म मल्या अनादि काल 1 पायरण हेम संजोग गुणमाल ।।८।। पाखाण थकी कनका घरे । तेहनो काज घणो जेम सरे ।। तिम आतमा कर्म एकठा मल्या 1 ध्याने करी करसू वेगला !) तेह भणी पातम ज्ञान स्वरूप । अछेद अभेद अनंत ग्ररूप ॥ चेतन तेज तरणो पूसलो । जनम मरा भयथी बेगलो ॥१०॥ एहो पातमा ध्याऊं जाण । वां लहवा सास्वत ठाण ॥ मजरामर पद लहवा सार । प्रसह दुःख छ ए संसार ॥११॥ अनादिकाल जीव भमनो जोय । पुरुष नारी नपुंसक होम ।। चंद्र सौम्य हो जय समनूर । के वारे गह मम के बारें सूर ॥१२॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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