SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૪૬ चांडालरी कचरे चंपायो । समूर्द्ध हूं फेहूं फायां । काया लह्यांकेटले दीन ए ॥४३॥ | माथ पोख बहूणां नीपंना । श्रीड फूटां पाखें संपन्ना । हलू हलू तिहां था वाय ए ॥४४॥ माय वहां अम् ऊ करमें अपार दुःख करयां । सूख तरस पीड्यां सही ए ॥४५॥१ चांडाली ऊपरों कचरघ, नाख्य ं । तव हुए कोई कोई बोल भांशु प कचरो तेणी खोलमो ए॥४६॥ ब्रह्म बैहू कूक तेगीय देशां । रु गरज कर घरी घिर लेई गई ए ॥४७॥ करण खवरावी तेरमयि पाल्यां । छोरुनी पेरे संसाया | होंडीयि कृमीनें खायता ए ॥४६॥ जेहू एवडो जसोधर राणो । चांडाली परों हृप्यो जागो । आणी मारीदत्त मानें पाप फल ए ॥४६॥ सिर पर छत्र चमर वीजंतो । ते कचार चरणें खजेतो । जतुनि एम पाप पीडंतु ए ॥ ५० ॥ राय सामंत हाथ झालंतु । रतन पावडीयि मही माहातो । घोडालनीमि ते पगि हृष्यो ए ।। ५१|| जनभूम्य बलहरं पिर रमतो । लोला करतो दिन नीगमतो | भमतो हीं हूं दे 5 यशोधर रास गए ॥५२॥ 1
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy