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बाई अजीतमती एवं उनके समकालीन कवि
महिन्ख बलि तीहा सेकीपारणो। वाले छःसने हो। वाणी सूणी मझनि सेई गयो ए ॥३३।।
प्रगन माहि तेरिण पिर पिर वाल्यो । अबेतन कूको बारणे वैर चाल्यो । पायो महिख सूजम घरिए ।।३४।।
नगरी बाहिर फलीही चांडाल । पर पण दीसि तेह सूगाल । वाल परम प्रस्ती भरयां ए॥३५!
अस्ति तणां कि डांडा लाख । मोटा अस्ती तशी बार साख । पाखल उपरि परम बीटी ए॥३॥
बांच्या ते तणां पसुप्रा नेस । रुषीर मांस फरि रहा बस बस । कसमसे मन दीठे घणं ए॥३७॥
पशूनां करंक दीसि ठाय ठाय । पाव्यानि ते वेसण देवाय ।
गाय मथोडीना पाटलाए ।३०।। पूछ बाहारशी कमर पथराय । मांस सणा ढग धि बहू ठाय । खाम कूतरा कर पूपडीए ॥३६॥
गृध्र काम समली पण फरए । मोसने खाई में कल कल करए। तीणि की प्रति बीहामक एमा
खाग महोख बेहू साथै सूमा। सीहा कुकडी पेटिइ हो मा। उदर भगन दाया धरणं, ए ॥४॥
ककड़ी तब हकी भारती। मोबारे तन खावा मंडी। ईडां तब नीसरी पडयां ए॥४२॥