SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यसोधर राम सूनानीज नोई मुद्रिका दीपि । आमाल संकल्प करी विज लीयि ॥ जसोपर पामो मिम किहे ए ॥२३॥ मि जोन्यू माहारा तनू साहामू । पण प्राभरण एक नहीं पाम्यू॥ दाम्यु दी गलि दोरडू ए ॥२४॥ मांस तरणा तेणे पिष्ट पडाव्याए । सजन साई मांस खबराव्या ॥ बली वार्यान से दीयू' ए ॥२५॥ छेदवी छेदवी दीष लुलाय । एणी पिर मौन पलादिक खाय । नाम ब्रह्मा रुलेई करीए ॥२६॥ अन्य खायि मन्य जो दव्य पामे । बाडमेलोक पाल्या एम भामे । कामें चाहा ते प्रापगिए ॥२७॥ पुत्र जमे माता रही भूषि। मात अमें पुष थाय दुःखी। मूना एका कोहो फिम लहे ए ॥२८॥ पुरष भव आपणा संतान । श्रा करी देता हसि दान । विणजिमें आपण भूक्षा सहीए ॥२६॥ एणि दृष्टांति पूरव के मरया। पाप पुण्य लेई प्रवतरया। निज करणी सह भोगवि त् ॥३०॥ मारीदत्त प्रह्म काई अनलष । मिथ्यास पापि पिर पिर खघ । देघ सुषा भगर्ने षणं ए ॥३१॥ कूमर तणी हूं दृष्टि पडयो । जाए यम मझ कालज नड़यो। कह्यो वचन सूपकारनि ए॥३२॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy