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________________ ई अजीतमती एवं उनके समकालीन चावि हिष को भून कर खाना खारें जल भरी मेहेली कढाय । हेठल अग्नी घणी बलाय । बलि महीख घरणं री करिए ।।१४।। तरसे ते वली री पार करतो । अधीक प्रधी तेरिण मोक धरतो। नरक वेदना जिम दुःख साहिए ॥१५॥ ओर पापी शस्थि कापि। खारि जल छांटि दुःख व्यापि । पापं फल एह्वा दाखच्याए ।।१६।। पीठनु कुकटु हण्यो जोय । देवी पुज्यानां फलए होय । कोनम करणु मिथ्यात असोए ।1१७! अण्य पगें रहयो हूं जोय । देखी परवार रघ्य घर रोय ।।१८।। कोय न सार माहारी करिए ॥१८।। चारन नीरे नीर न पाय । अमृतणो सराध करी सह खाय । घणा राणा रायनो होतरचा ए॥१६।। ब्राह्मण घरला मली सराध सरादे । राय कह्नि अंजली भरादि । न ख़ानि नरम माहारो लेईए ।।२०।। साकि अंगूठे पीड पहावि । पिडि पिडि गायि देवायि। मिहिखी अश्वाधिक धन घणं, ए ॥२१॥ बासमू काची कहि एम कहो। राय रायनी माय सरगी लहों। द्विष करहिं तिम कूपर करिए ।।२२।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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