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Tई अजीतमती एवं उनके समकालीन ऋवि
सरस अन्न पंचामृत जमतो । भमर पलंग अपैरवी ममतो। ममनो कंडाल घिर वेदना ए ॥५३॥
फूल मुकुट गलि फूल हार । सुगंध वस्त्र तनु लातो अपार ।
अकरते हूं पड़ी रहूए ॥५४॥ अमूलक भीणां वस्त्र पहिरंतो । अनेक अषण हूं देह धरतो। ते हूं मीतादिक दुःख महूए ॥५५||
विवि परमानें: जीबडा कोण कुरण दुःष न पाये ।
भावे न कुरण कोण वेदना ए ॥५६।। इम जारणी मिथ्यामत टालो। जीव दया मम वच क्रम पालो । जिम दुःख जाल पड़ो नही ए ॥५७।।
यह कर्कट बेह कर्कट दाध्या सिंहां जाण । गती मोज़ा सिर सोभती । पोछ पुछ पांख पोदी होइन । पाछली गति तक चदीय । ऋक फह बोलत सोहोम ।। नमी कीटक घर्ष ग्यायंतां । वाध्यां तीहां विचार । पापे पापज बाघयो मारिदत्त अवधार ||१|| श्री तीर्थकरसन्मुखांबुजभवाश्वेताब्भवादामिनी । या माता शिलिबानी सुवरदा बेरपाक्षमालाधरा ।। पुस्तकाभूषित हस्तकात्रिनयना हारांवरा भूषिता । श्रीदेवेन्द्रसूविक्रमसुतपदा कुर्यात सतां मंगलं ।।
इति श्री यजोधर महाराज चरिते । रासचूडामणी काव्य प्रतिछंदे । मुदेव कवि श्री विक्रमसुन देवेन्द्र विरचिते यशोधर चन्द्रमती । रभित कृत्रिम कुक्कुंट टनोभूतपाप प्राप्न दुष्ट खंड भव भ्रमण । वर्णनोनाम पष्टोऽधिकारः ।।