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________________ यशोधर रास मीफस हदो तस जन्म । मनुख भव वली राखीयो हिल। पाम्यो चीतामणी रस्न । सेह सही प्रालि गम्यो । हेल॥४३॥ पामी मनुख्य जम्म । जिणे रुडो सील न पागम्यो ।हेला इम जारणी नरनार । सील तणो लोप म करो।हेला जिम पाम्यु बहु सुख । संसार सागर हेलांतरो हेन।।४।। कोल मष्ट होने से ममतमता की दशा तब सेमि सहू सांभल्यू । कोढणी तेग विचार । जो अंता द्रष्टि पड़ी, मारीवत अवधार ॥१॥ प्रलतो भरी पगि चालती । रातां पगला पईत । हदि पगलां पर भरयां। बड़ा चित्त नईत ॥२॥ वीछोयडा झमकावती । जाती कुबड़ा सूजेरण। से प्रांमली मली गली पडी । पग्म थकी पापेण ॥३॥ धूटी पानी राती हती । मांस गली गदो जाण । हाड उवाडा बीसीयि । कोकसा चरण न ठाण ॥४॥ पग पौंडी सड़ी पड़ी । नसीमि कीडा कोट । कुबडो परतु जे हनि । सभास ऊपेर करी कोट ।। जोध परी सासमी हती। धूटण हुतो सुसोम । हाड ऊघाडां दीसियि । टाली तणो टल्यो थोभ ॥६॥ नीसंब रयो परीवेसतो । कूबड़ी खेरती जय । मांस मोटिम मली गई । हाउसाडरह्यो तत्र ॥७॥ उदरें नाभी वह हनु । ते परुपि भराय । स्तन कूबडो कर झालतु । ते तो गली गली बाय ।।।। कंठ संख समो हतो । हदि खातो मन न खाय । अपर कूबडो जे चूंबतो । गली गया नहीं ठाय ॥६॥ नाक हनो गली गयो। रह्यो इंडी बहु छन । प्रांष ते कुछ समी रुती । कूवता जोती प्रभद्रष्ट ।।१३ कूबढा पग घेणी लोहती । ते सीरन' बसवर्ण । कुंडल जिहां लिहिकावती । गली गया वेइ कर्ण ।।११।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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