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________________ इग्रजीतमति एवं उसके समकालीन कवि वेनि म प्राय । सूघाड्या मही सत्रे हेल। मूचया महोख विचार 1 मारिदत्त कर्म एम परभवे | हेल॥ २६॥ ते महीख पत्राय । खायि तेह सहू मती हिला भुवन मभार। हूं लेवे जई बांच्यो क 'जीत' मन मार के मोई सही पापणी हिला गंध उठी छि पार । दामी किहिए पाडा तरी हिल||३१|| बीजी कहि तेणी बार। माछां वाती राणी लोभणी | हेल। अपनी तेही कोढ । ते गंधाय सो सही हिला |३२|| श्रीजी कहि रागो बेहेन । त ए भेद जागो नहीं हिला राय जोर मारी । कूबडा साथि संगम करो । हेल ।। ३३ ।। शील महात्म्य नार हृष्णो विन देय । प्रेम पापि पिसो हेल तर पायें वो कोड 1 सरीर सबै गली गय हल ||३४|| गील न पाल्यो जाता। तेह पाप फलें रोग भयो ।हेल। सही सुग्व कारणा सील सील संसार तू तारण हेिल ||३५|| हूगुण सागर सील सील सील सयल दुखवारण | हेला सगैरह मंडर सील सील ते दुरगति खंड हिल ॥ ३६॥ निरमल जम होय सील सील संसार विहंडगा हेल सील लोकें पूज्य 1 विकट संकट सील थी टले हिल ।। ३७ । सीलें देव करि साह्य । मालि पुत्र धन रीष मलि | हेला इस जाणी नर नार । सील पालो प्रती कजलो हिल ||३८|| जिम लहो संसार पार । सौध सुख पाभ्यो नीरमनो हिल सील न पालि जेह । नरनारी ते मुरख भण्यो हल || ३६ || अपकीरत पढो तेरा | लोक मोहि बतावीयो गणो हेला उत्तम गुण जेवन्न । तीरिण दावानल मुकीयो हिल॥४०॥ २४१ 14 अनेक आपदा कष्ट । जाणे तेडवा संकेत कीयो हल | सरग मूगती दुआर | बार भोग लता लोभी जीवो हिल||४१|| त्रिभुवन चुडा रत्न | सील आपणो जीएि लोपीयो |ल| धोग धौग तेह अवतार। जिरिए मडो सील न पालीयो । हेल। १४२ ||
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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