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________________ चाई प्रजोतमनी एवं उसके समकालीन कवि २२३ विनय सहीत मुझन कहि ! छानी नाहानी बात ।। विनमुक्त नायक खिलाना साड रूडो पाजणो हो। मोकलयो मुझ मात ।।३५॥ माह वंचीजे वाचरे । ते सही नारि कुनार ।। पोहर केरी सूखडी हीन श्री राजनि मत्रीधार ।।३।। श्रीस' जो प्रागन्यां होय । हसी करी प्रीसो तेह ।। याई जी ती प्रारोग सोही०। थोडो एकलीयो एह ।।३।। एम कही मायने मूकयो । बेहू जमा मने रंग ॥ समय समय विख व्यापयू ही। दीसतू भमि मुझ अंग ॥३८।। राजा का सिंहासन पर जाकर वैध २ चिल्लाना चसू करी हूं उठीयो । बेठो सिंहासन जाय || वैद बंद करी भोमि पडयो ही। तब नारी भावी धाइ ।।३।। राजा की मत्यु होना वस्तु धाई भावी घाई प्रावी । तवहते नार । रे रे कंत कसू हवं । इम कहीं पे बचन परी परी । केस कलाप विस्तारयो। षसमसीती पड़ी मुझ ऊपरि । जागा वैद वीखवास शि ॥ दंति कठ पीछेय । जीव गयी तेरिण क्षणि । मारीदत्त सुरणी भेय ।।१।। मास वरणमारानी रामो द्वारा विलाप करमा वजारे तव ते नारी जाण । पापणी मिथ्या तणी नि लेई जसोधर नाम । रोवि ते मायावणी ।वि०। ॥१॥ जसोषर रे हवि ए बाल । जसोधर रे। सूर सनो तू राय !! ऊग्यो निवली प्राथम्मो । जसोधर रे । राज ए कमलरणी जाण ।। कुमलाणी ए सू तुझ गम्यो । जसोधर रे ॥२॥ व्याप्पो हवि अंधकार । हु एकलौ किम रहू ज०। वापड़ी अबला बाल । बिरहनी वेयरणा केम सहज ॥३॥ तरु पर अमि विण वेल । द्वाष मंडप विण किम रिहि ।ज। तिम सही अबला अनाथ । स्वामी विना कहो किम सोहि ॥४॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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