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यशोधर रास
रानी द्वारा यशोषर से प्रार्थना
तप लेवा जब चालीयो ।ही। तब प्राधी ते नार ।।२१।। तेह्म तप लेवा चालया। मुझ में मूकी प्राज ॥ एकलही नोरधार में ही मझ परि रहें कुण काज ।।२।। एकलहा क्रम आये सो । मुझनि नखी संसार ॥ हूँ तह्म सरसी तप करू नही। सफल का अवतार ।।२३।। मझ ऊपरि तम दया घरणी । वमन न लोपु एक ॥ मऊ मंदिर भोजन करो हो। पछि तव लेसू वीवेक ॥२४॥ कुअर तणुराज जोईनि । क्षमा तम कीजे राय ।। पछि बेहू जण तप लेसू सही । इम कही लागी पाय ॥२५॥ पतिश्रता जे कामिनी । कंत सुतप लीयि सार ॥ तप करी फल हूँ मागसू ही। भव भव तुम्ह भरधार 1॥२६।। माज तहह्म स्वामीनहो तसी । के वेस' या एपो राय !! माय सहीत जमो मन रसी ही प्रभाति बासू वनठाय ॥२७॥ भोजन प्राग्न्या दीजियि । कीजीमि करुणा एह ।। माया वचने हैं मोहियो ही मान्यु वचन बलीतेह ॥२॥ स्वपन न दीठं इम लेखव । नीसी दी जे अन्याय ॥ नारी माया क्न माहि ही। पडया कवरण न भूलाय ॥२६॥ राय सहीत चालीयो । भोजन काजे जंग।। जाणे जमेंह' तेडीयो ही। नारी मंदिर गयो रंग ||३०||
रानी द्वारा विविष पकवान बनाना
हरवीत हबी मायावनी । स्नान विलेपन दोध ।। कनक पाल हेम वेसणही । प्रोसणा हरष सू कोष ।।३१।। खाजां सेव सूहालडा । फेबी सेंजोरी सार ।। धेवर साकर फेणीका ही। हेसमी लापसी अपार ॥३२॥ पूड़ा वहाँ भाडा वेदमी । घृत वली साक अनेक ॥ माय सही जमतु र ही. पण देखू दीवध बीयेक ॥३३॥ प्राग पाचमू भाग करो । जाणे करयो मुझ छेद ।। बंधुकी दुध्य करी रही ।ही। बेहु मारवा विश भेद ॥३४॥